पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७८७

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ग्रन्थावली ] [७८३

  विशेष--(१) वाह्माचार का विरोध है। हिन्दू और मुसलमान दोनो के धार्मिक लोकाचार की निरर्थकता का प्रतिपादन है।
        (२) राम अल्लाह आदि शब्दो के द्वारा च्यग्य भगवान के स्वरूप के प्रति कबीर की निष्ठा है। यही इस पद का प्रतिपाद्य है।
        (३) निर्गुण निराकार व्रह्म के प्रति कबीर की अनन्य निष्ठा किसी भी सगुणोपासक भक्त की अनन्यता से किसी प्रकार कम नही है। यथा-
            मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।      (मीराबाई)
                       (३३६)
            तहां मुझ गरीब की को गुदरावै,
                   मजलसि दूरि महल को पावै ॥टेक॥
            सतरि सहज सलार हैं जाकै,असी लाख पैकंबर ताकै॥
            सेख जु कहिय सहस अठयासी,छपन कोड़ि खेलिबे खासी॥
            कोड़ि तेतीसूँ अरू ह्यिलखांनां,चौरासी लख फिरै दिवांनां॥
            बाबा आदम पै नजरि दिलाई,नबी भिस्त घनेरी पाई॥
            तुम्ह साहिब हम कहा भिखारी,देत जवाब होत बजगारी॥
            जन कबीर तेरी पनह समांनां, भिस्त नजीक राखि रहिमांनां॥
        शब्दार्थ- गुदरावै== निवेदन करना, सेवा मे पहुँचाना। मजलिस--सभा।
  सलार==सरदार। भिस्त--वहिश्त,स्वर्ग। खवास== मुसाहिब। नबी==पैगम्बर।
        संदर्भ-- कबीर अपनी दीनता की दुहाई देकर भगवान से शरणगति की प्रार्थना करते हैं।
        भावार्थ-- वहाँ भगवान तक मुझ गरीब की प्रार्थना को कौन पहुँचाएगा। उसकी सभा बहुत दूर है। फिर उसके महल तक किसी की पहुँच किस प्रकार हो सकती है? अथवा उसमे कोई कैसे स्थान प्राप्त कर सकता है? उस परमात्मा के सत्तर हजार सैनिक सरदार हैं,अस्सी लाख पैगम्बर हैं,अठासी हजार शेख हैं एवं छप्पन करोड़ मनोरंजन करने वाले मुसाहिब हैं। इनके अतिरिक्त तैतीस करोड़ अन्य प्रजाजन हैं। उसके चौरासी लाख मंत्री हैं। इन सबमे से बाबा आदम पर खुदा की जरा सी नजर पड़ी और उस पैगम्बर को बहुत बड़ा स्वर्ग प्राप्त हो गया। हे भगवान तुम मालिक हो, और मैं भिखारी मात्र, आपको उत्तर देते हुए वदकारी(बुराई) होती है। कबीर कहते हैं कि यह सेवक आपकी शरण मे आया है। हे कृपालु! आप इसको स्वर्ग के पास अर्थात् अपने निकट स्थान देने की कृपा करें।
       अलंकार-- (१)वत्रोक्ति-- तहाँ गुरदावै।
               (२)गूढोक्ति-- मजलिस पावै। तुम'भिखारी।
               (३)अनुप्रास--सतरि सहस सलार।
      विशेष-- (१)सगुणोपासक भक्तों के समान सालोक्य मुक्ति की कामना अभिव्यक्त है।