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[कबीर
 


(११) इश्वर के असीम वैभव और अपनी अल्पता का मार्मिक उल्लेख है। इस उल्लेख के द्वारा साधक भगवान से कृपा की प्रार्थना करता है कि वह उसे अपने निकट रखले।

(३४०)

                      
जौ जाचौं तो केवल रांम,
आंन देव सूं नांही कांम ॥टेक॥
जाकै सूरिज कोटि करै परकास,कोटि महादेव गिरि कविलास॥
ब्रह्मा कोटि बेद ऊचरै,दुर्गा कोटि जाकं मरदन करै॥
कोटि चद्रमां गहै चिराक,सुर तेतीसूॅ जीमै पाक॥
नौग्रह कोटि ठाढे दरबार,धरमराइ पौली प्रतिहार॥
कोटि कुबेर जाकै भरै भंडार,लक्ष्मी कोटि करै सिंगार॥
कोटि पाप पुनि ब्यौहरै,इद्र कोटि जाकी सेवा करै॥
जगि कोटि जाकै दरबार,गध्रप कोटि करै जैकार॥
विद्या कोटि सबै गुण कहै,पारब्रह्म कौ पार न लहैं॥
बासिग कोटि सेज बिसतरै,पवन कोटि चौबारै फिरै॥
कोटि समुद्र जाकै पणिहारा,रोमावली अठारह भारा॥
असखि कोटि जाक जमावली,रांवण सेन्यो जाथै कली॥
सहसबांह के हरे परांण,जरजोधन घाल्यौ खै मांन॥
बावन् कोटि जाके कुटवाल,नगरी नगरी खेत्रपाल॥
लट छूटी खेलै बिकराल,अनत कला नटवर गोपाल॥
कंद्रप कोटि जाकै लांवन करै,घट घट भीतरि मनसा हरै॥
दास कबीर भजि सारगपान,देहु अभै पद मांगौं दांन॥

शब्दार्थ—जाचौं=माँगता हूँ। चिराक=चिराग, दीपक। खैमान=क्षयमान। कन्दर्प=कामदेव। लावण्य, प्रसाधन शार्ड्गपाणि=धनुष धारण करने वाले, राम।

सन्दर्भ—कबीर अनन्त सामयर्यवान् भगवान की प्रार्थना करते हैं।

भावार्थ—यदि मैं याचना करता हूँ, तो केवल राम से ही करता हूँ। अन्य देवताओ से मुझे कुछ भी लेना-देना नही है। उन राम के यहाँ करोड़ो सूर्य प्रकाश करते है, करोड़ो महादेव जिनके कैलास पर्वत पर रहते हैं,कोटि ब्रह्मा जिसके यहाँ वेद-पाठ करते हैं, जिनकी आज्ञा से करोड़ो दुर्गा दुष्टों का दमन करती है, जिनके समक्ष करोड़ो चन्द्रमा दीपक लिये रहते हैं,तैतीस करोड़ देवता जिनकी कृपा का प्रसाद प्राप्त करते हैं, करोड़ो नवग्रह जिनके दरबार मे खड़े रहते हैं,जिनके दरवाजे पर धर्मराज प्रतिहारी का काम करते हैं, करोड़ो कुवेर जिनका भण्डार भरते हैं,जिनको प्रसन्न करने के लिये करोड़ो लक्ष्मी श्रृंगार करती हैं, करोड़ो पाप-पुण्य जिनके संकेत पर होते रहते हैं, करोड़ो इन्द्र जिनकी सेवा मे रहते