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ग्रन्थावली]
[कबीर
 
(iii) पुनरुक्ती प्रकाश—फिरि फिरि, करि करि।
(iv) पर्यायोक्ति—नाहिंन राम अयाना।
(v) विरोधाभास—हरि को दास .. तिराई।
(vi) सवधातिशयोक्ति—पाठ. सुमृत।

विशेष—(i) वाह्याचार का विरोध स्पष्ट है।

(ii) जल के मजन्ये... नहाव समभाव देखे।

पडित! बाद वंदै सो भूंठा।
राम कगहयाँ दुनियाँ गति पावै,(तौ) खाँड कहयाँ मुख मीठा।
बिनु देखे बिनु अरस-परस बिन, नाम लिए का होई? (कबीरदास)

(iii) हिरदै कठोर—इसका अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है—जो हृदय कठोर करके काशी-करवट लेते है। इसका पाठातार भी इस प्रकार मिलता है—'काशी करोत' लेते है।

(iv) मरै जे मगहरि—'मगहर' आदि स्थानो को पौरणिक परम्परानुसार अशुभ स्थल माना जाता है। यह प्रवाद प्रचलित है कि जो कोइ मगहर मे मृत्यु को प्राप्त होता है, वह नरक का भोग करता है। कबीर इस मान्यता को अन्ध विश्वास मानते थे और इसी कारण उन्होने इसके विरुद्ध आवाज उठाई थी। प्रस्तुत पद मे वह मगहर मे शरीर त्याग से स्वर्ग-लाभ की बात करते है। स्पष्टत यह एक अध विश्वास को एक अन्य अन्ध विश्वास के द्वारा मिटाने का प्रयत्न है। यदि मगहर मे मरने पर नरक नहीं मिल सकता है, तो वहाँ मरने पर स्वर्ग की प्राप्ति क्यो कर सम्भव होगी? सुधारक गण अन्ध विश्वास को हटाने के प्रयत्न मे स्वय अन्ध विश्वासों शिकार बन जाते है। ऐसे व्यक्तियो के विषय मे यह उक्ति सर्वथा सगत है कि "जिन लोगो ने कूडा साफ करना चाहा था, उनके नाम कई घूरे और बढ गए है।"

बात यह है कि शकराचार्य ने जब बौध्दो को आर्यावर्त्त से खदेडा, तो उन्होने अपने अड्डे बिहार मे स्थापित कर लिए और वहाँ उन्होने वामाचार फैलाया इसी कारण वैदिक मतानुयायी महानुभाव मगध (बिहार) प्रदेश को उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगे थे। यथा—

लागहिं कुमुख बचन सुम कैसे। मगहँ गयादिक तीरथ जैसे

(रामचरितमानस,गोस्वामी तुलसीदास)

(v) मरै बनारसि—सामान्यत यह विश्वास है कि काशी (बनारस, वाराणासी) शिवजी के त्रिशूल के ऊपर बसी हुई है। वहाँ मरने पर स्वर्ग की प्राप्ति होती है। अत: बहुत से व्यक्ति अन्त समय मे काशी-वास करने के इच्छुक रहते है।

सम्भवत: इस पद मे 'काशी-करवट' की ओर सकेत है। काशी के एक कुएँ मे एक आरा लगा हुआ था। अध विश्वासी जनता उस कुएँ मे गिरकर अपने