पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७९८

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७६४ ] [ कबीर

     सेवग सो जो लागै सेवा, तिनहीं पाया निरजन देवा ॥
     गुर मिलि जिनि के खुले कपाट, बहुदिन आवै जोनीं बाट॥
     यह तेरा औसर यह तेरी बार,घट ही भितरि सोचि बिचारि॥
     कहै कबीर जीति भावै हारि,बहु विधि कह्यौ पुकारि पुकारि॥

शब्दार्थ-बुद्धावस्था । हीण=हीन,दुंवल,क्षीण । सारग पाणी = हाथ मे धनुष धारण करने वाला, श्री राम । जोंनी बाट = जन्म के रास्ते ।

     सन्दर्भ - कबीरादास भगवद भक्ति करने के लिए पुकार-पुकार कर कहते हैं ।
     रे मानव , तुम भगवान का भजन करो । इस बात को भूल मत जाओ।

मनुष्य जन्म का यही लाभ है। जब तुम्हे मानव शरीर प्राप्त हो गया है, तो इससे गुरु की सेवा करो और प्रभु-भक्ति का उपांजन करो। जिस मानव शरीर के देवता भी अभिलाषी है,वह तुम्हे प्राप्त है। इस मानव-शरीर के द्वारा भगवान की सेवा करो। जब तक तुमको वृद्धावस्था सम्वधी रोग नही घेरते हैं,इस शरीर को काल नही ग्रसता है और तुम्हारी ढाक शन्ति क्षीण नही होती है , उससे पहले मन को भगवान राम के भजन मे लगा दो। यदि तुम अब (शरीर के स्वस्थ रहते हुए) भगवान का भजन नही करोगे तब फिर हे भाई। तुम उनका भजन कब करोगे? अतकाल आने पर तुमसे भगवान का भजन नही किया जा सकेगा। इस समय जो कुछ कर लोगे,वही सार है-वही तुम्हारी सच्ची कमाई है।इस समय भजन करने पर तुमको बाद मे ऐसा घोर पश्चाताप होगा जिसकी कोई सीमा नही होगी । सच्चा भक्त वही है जो भुट भक्ति मे लग जाए । जो अबिलम्ब (अभी और कही) प्रभु-भक्ति मे लग जाते है,उन्ही को माया रहित प्रभु (निरजन) की प्राप्ति होती है। सद्जगुरु के साक्षात्कार (गुरु के उपदेश) द्वारा जिनके ज्ञान-कपाट खुल गए है, जिन्हे ज्ञान की प्राप्ति हो गई है, वे फिर इस जन्म-मरण के चक्कर मे नही पडते है।हे मनुष्य तुम्हे स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ है। मोक्ष-साघन के लिए यही तेरी बारी है-चौरासी लाख योनियाँ भोगने के बाद 'साधन-धाम मोक्ष कर द्वार' मानव शरीर मे आने को तुम्हारी बारी आई है। इस बात को तुम अपने मन मे अच्छी तरह सोच-समझ लो।कबीर कहते है कि राम भजन के द्वारा मोक्ष प्राप्त करके चाहे तो तुम अपनी इस बारी (दाँव) को जीत लो अथवा भजन की उपेक्षा करके और मोक्ष को गाँवाकर इस दाँव को हार जाओ। कबीर कहते है कि मैने तो बार-बार पुकार कर तुम्हे चेतावनी देकर अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है।

              अलंकार- (१) गुढोक्ति--भजसि कब भाई।
                     (२) पदमंत्री--सार बार पार
                     (३)रूपकातिशयोक्ति--कपाट।
                     (४)रूपक--जोनी याट।
                     (५)पुनरुक्ति प्रकाश--पुकारि पुकारि।