पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/७९९

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ग्रान्थावली ] हूँ ७९५ विशेष- समभाव के लिए गोस्वामी तुलसीदास का यह कथन देखिए… बडे भाग मानुष तन पावा । सुर नर मुनि सदग्रन्थन गावा ।

                       ४ ४
    नर तन सम नाहिं कवनिउ देही । जीव चराचर जाचत तेही
    नरक स्वर्ग अपवर्ग निसेनी । ग्यान विराग भगति सुभ देनी ।

सो तनु धरि हरि भजहिंन जे नर । होहिं विषय रत मद मंद तर । काच किरिच बदलें ते लेहीं । कर ते डारि परस मनि देहीं

                                         (रामचरितमानस) 

तथा-हरि, तुम वहुत अनुग्रह किन्हो ।

          साधन-धाम बिवुध-दुरलभ तनु, मोहि कृपा कर दिन्हो ।        (विनयपत्रिका)
             ( ३४९ )

ऐसा ग्यांन बिचारि रे मनां,

                हरि किन सुमिरे दुख भंजनां । । टेका ।
  जब लग मैं मै मेरी करै, तब लग काज एक नही सरै ॥
  जब यहु मै मेरी मिटि जाइ, तब हरि काज सवारै आइ ॥
   जब लग स्यध रहै वन मांहि, तब लग यहु बन फुलै नांहिं ॥
   उलटि स्याल स्यंध कूँ खाइ, तब यहु फुलै सब बनराइ ॥
   जीत्या डूबै हाग्या तिरै, गुर प्रसाद जीबत ही मरै ।
   दास कबीर कहै समझाइ, केवल रांम रहौ ल्यौ लाइ ॥
    शब्दार्थ - भजना=नष्ट करने वाला । सरै=सिद्ध हो गया । स्यघ……-…शेर
अहकार । फुलै=भक्ति-भावना का उदय । स्याल=चेतन । मरै = जीवनमुक्त ।
    संदर्भ-कबीरदास अहकार का त्याग करके राम भक्ति का उपदेश

देते हैं ।

         भावार्थ - रे मन, तू मन मे ऐसा विवेक धारण करता है । जिससे दु खो

का नाश करने वाले प्रभु का भजन होने लगे ? जब तक 'मैं' और मेरी (अहंभाव) मे लिप्त रहोगे, तव तक तुम्हारा एक भी कार्य सिद्ध नही होगा । जब यह ‘मैं' और 'मेरी' की भावना समाप्त हो जाएगी, तब भगवान स्वय आकर तुम्हारे समस्त कार्य पूरे कर देगे । जब तक अन्त करण रूपी वन मे अहकार रूपी शेर का निवास रहता है, तब तक इस अन्त करण रूपी वन मे भक्ति-भावना के फूल विकसित नही हो सकेंगे । जब शुद्ध बुद्ध चैतन्य इस अह रूपी सिंह को समाप्त कर देगा, तभी यह अन्त करण रूपी वन ज्ञान और भक्ति को फूलो से युक्त हो जाएगा । इस दशा को प्राप्ति होने पर परिस्थिति एक दम बदल जाएगि | आज तक जिस अहंकार ने चैतन्य को दबा रखा था ,वह सदा संवदा के लिये नक्ष्ट हो जाएग ओर जो चैतन्य अहाकार द्वारा पराभूत था, वह अब सदा-सर्यदा के लिए मुक्त हो जाएगा | इस समय साधक गुरु की कृपा प्राप्त करके जीवन्मुक्त हो जाता है | कबीरदास सभभ्का