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ग्रन्थावली अलन्कार - (१) पुनरुक्ति प्रकाश - प्रथम पक्ति । उठि उठि ।
(२) रूपकातिशयोक्ति चोट । (३) रूपक--ररापाग रे । (४) गुढोक्ति--क्या गृह रे ।
विशेष---- (१) ररा रे--राम नाम की महिमा का प्रतिपादन है । (२) अजराईल मारै--- इस्लामी सस्कारो का प्रभाव है । (३) देह सुहाग रे - रहस्यवाद का प्रभाव है । (४) समभाव के लिए देखे--- (क) जतन वितु मिरगनि खेत उजारे ।
× × अपने अपने रस के लोभी , करतव न्यारे-न्यारे । × ×
वुघि मेरि किरषी , गुरु मेरी बिभुका अक्खिर दोइ रखवारे । एवं तोरी गठरी से लागे चोर , बटोहिवा कारे सोवै । पाँच - पचीस तीन हैं चोखा , यह सब कीन्हा सोर । - कबीरदास
(ख) शकराचार्य ने भी इन मानवीय दुष्प्रवृत्तियो को डाकू कहा है,जो ज्ञान रूपी रत्न को लूटती रहती है-- काम क्रोधश्च लोभश्च , देहे तिष्ठान्ति तस्करा ज्ञान रत्नापहाराय तस्स्याजागृत , जागृत । (ग) मैं कोहि कहाँ विपति अति भारी । श्री रघुबीर घोर हितकारी । मम हृदय भवन प्रभु तोरा । तहँ बसे आई बहु चोरा । × × तम, मोह,लोभ,अहकारा । मद,क्रोध बोध-रिपु मारा । अति करहिं उपद्रव नाथा । मरदहि मोहि जानि अनाथा । मै एक अमिट बटपारा । कोऊ सुनै न मोर पुकारा । × × कह तुलसीदास सुनु रामा । लुटहिं तसकर तब धामा । (गोस्वामी तुलसीदास विनय पत्रिक) (३६२) जगहु रे नर सोवहु कहा, जम बटपारै रू धै पहा ॥ टेक॥ जागि चेति कछु करौ उपाइ,मोटा बैरी है जमराइ ॥ सेत काग आये बन माहिं,अजहु रे नर चेतै नाहिं ॥ कहैं कबीर तबै नर जागै, जम का डड मूड मै लागै ॥