पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८०२

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७६५] [क्वोर शब्दार्थ-बटपारै=बटमार, लुटेरे |पहा =पथ | मोटा=बडा| सत=श्वेत| डड=डडा | संदर्भ -कबीर जीव को मोह निद्रा का त्याग करने को कहते है| भावार्थ-रे मानव, तुम जाग जाओ, इस अज्ञान-निद्रा मे क्यो सो रहे हो? यमरूपी लुटेरे ने तुम्हारे जीवन-पथ को रोक रखा है| (वह चाहे जब तुम्हे लूट लेगा)| जाग कर तथा सचेष्ट होकर अपने जीवन के सरक्षण का कुछ उपाय करो| यमराज तुम्हारा बहुत बडा शत्रु है| तुम्हारे इस जीवन रूपी वन मे श्वेत वाल रूपी श्वेत काग आगए हैं, जो तुम्हारे नाश के सूचक है| हे मानव तुम अब भी सावधान क्यो नही होते हो? कबीर कहते है कि मानव तब होश मे आता है जब यमराज का डडा सिर पर बजने लगता है| अलंकार- (।) गूढोत्कि- सोबहु कहा |

      (॥) रूपक- जम बटपारै |
      (॥।) रूपकातिशयोक्ति- सेत काग, वन |

विशेष-(।) डड मुड मै लागै-लोकोत्कि का प्रयोग|

     (॥) वन मे श्वेत कौओ का आना अत्यन्त अशुभ माना जाता है| वह नाश-सूचक होता है|
                           (३५२)    

जाग्या रे नर नीद नसाई,

     चित चेत्यौ च्यंतामणि पाई ||टेक||

सोवत सोवत बहुत दिन बीते, जन जाग्यां तसकर गये रीते | जन जागे का ऐसाहि नांण, विष से लागै बेद पुरांण || कहै कबीर अब सोवौं नांहि, रांम रतन पाया घट मांहि || श्ब्दार्थ-नसाई=नष्ट करके |च्यतामणि=रामनाम रूपी चिंतामणि| तसकर=चोर,लुटेरे |रीते= खाली हाथ| नाण=लक्षण | संदर्भ-पूर्व पद के समान | भावार्थ-रे मानव, अज्ञान की नीद समाप्त करके अब जाग जाओ| मन मे विवेक धारण करो| तुमको भगवत्राम रूपी चिन्तामणि की प्राप्ति होगी |तुम्हे इस अज्ञान-निद्रा मे सोते हुए बहुत समय व्यतीत होगया है| मानव के जगते ही काम-कोघादि रूपी चोर खाली हाथ ही भाग जाते है| जागे हुए (ज्ञानी) मनुष्य का यही लक्षण है कि उसे वेद-पुराण भी विप के समान (व्यर्थ) प्रतीत होने लगते है| कबीर कहते है कि मुझे तो अपने अन्त कग्ण मे राम-नाम रूपी रत्न की प्राप्ति होगइ है| अब मै तो अज्ञान के वशोभुत होकर नहीं सोऊँगा| अलंकार- (।) अनुप्राम-नट नीद नसाई| चित चेत्यौ च्यतामणि|

       (॥) रूपकातिशयोत्ति-च्यंतामणि|
       (॥।) पुनरुक्ति प्रकाश-सोवत सोवत|