पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८०८

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शब्दार्थ- बीच= अन्तर, भेद युद्धि । अजाना=अपरिचित । पुरवन=पूरा करने वाले ।

  सन्दर्भ-   कबीर भगवान से भक्ति की याचना करते हुए कहते हैं ।
  भावार्थ - हे प्रभु । मेरे और आपके बीच मे अभी भी अन्तर है । अर्थात् मैं और आप एकाकार नही हो पाए है । तब आपका दर्शन किस प्रकार हो ? परन्तु आपके दर्शनो के बिना भी मेरा हृदय व्याकुल है । मै भी कुसेबक हूँ अथवा आप भी अज्ञ हैं- मेरी आन्तरिक भावनाअो से पारिचित नही  हैं ? दोनो ही मे दोष है, हे राम, यह क्यो नही केहते हो ? तुम्हे तीनो लोको का स्वामी काहा जाता है और तुम मन की समस्त इच्छाओ को पूर्ण करने मे समर्थ हो । कबीरदास केहते है कि हे भगवान, आप मुझे अपने दर्शन दे । या तो मुझे अपने पास बुला लें अथवा आप स्व्य ही मेरे पास चले  आएँ ।
    अलंकार- (१) गूढीत्कि- कैसे....तोरा ।
               (११) सदेह-कुसेबक क्या तुम्हहि अजाना ।
    विशेष- आप या तो मुझमे अद्धैत-भावना जगाकर अपने आप मे मुझे लवलीन करले अथवा ऐसी कृपा करे कि मुझे जीवन और जगत मे सर्वत्र आपकी व्य्त्क प्रवृत्ति का सरस आभास प्राप्त होने लगे। प्रकारांतर  से भक्ति की याचना है ।
                                            (३५६)
      क्यूं लीजै गढ़ बका भाई,
                     दोबर कोट अरु तेवड़  खाई ॥
      कांम  फिवाड़  दुख  सुख  दरबांनीं, पाप  पुंनि  दरवाजा    ।
      क्रोध  प्रधान  लोभ  बड़  दूंदर,  मन  मै  वासी  राजा       ।।
      स्वाद  सनाह  टोप  ममिता  का  कुबधि  कमांण  चढ़ाई  ।
      त्रिसना  तीर  रहे  तन भीतरि, सुबधि  हांथि नहिं  आई      ।।
      प्रेम  पलीता  सुरति नालि करि, गोला  ग्यांन  चलाया       ।
      ब्रह्म   अग्नि  ले  दिया   पलीता, एकं  चोट  ढहाया         ।।
      सत  संतोष  ले  लरने  लागे,   तोरे  दस  दरवाजा           ।
      साध  संगति अरु गुर की कृपा थे, पकरयौ  गढ़ कौ राजा   ।।
      भगवत  भीर  सकति  सुमिरण की, काटि काल  की पासी  ।
      दास  कबीर  चढ़े  गढ़ ऊपरि, राज  दियौ  अविनासी        ।।
    शब्दार्थ-क्यूँ= किस प्रकार । गढ= किला, शरीर । बका= टेढा, दुर्गम, कठिन । लीजै= विजय प्राप्त की जाए । दोबर= दोहरा अथवा दैत भाव । काठ= परकोटा, दीवाल ।  दोबर कोट=अन्नमय एव प्राणमय कोप । तेवर= तिहरी । तेवर खाई=

तीन ग्दाइयाँ- मनोमय, विज्ञानमय एव आनन्दमय कोप अथवा तीन नुण । दरबानी= पहरेदारी ।दुदर= द्वन्द। मैवासी= नायक, किलेदार ।सनाह=सन्नाइ=कवच। टोप= शिरस्त्राण । भगवत= भागवत कर्म । पासी= पाश ।