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[कबीर की साखी
 


भावार्थ—शिष्य लोकानुमोदित मार्ग का अन्य अनुसरण करता हुआ जा रहा था। परन्तु आगे सतगुरु के दर्शन हुए। उन्होंने ज्ञान का दीपक हाथ दिया।

विशेष—सतगुरु की महान अनुकम्पा इसलिए हो कि उसने अन्धानुकरण और लोक वेद प्रतिपादित मार्ग को निःसार बताया और ज्ञान के दीपक के जीवन के मार्ग को परिष्कृत एवं अलौकित किया।

शब्दार्थ—पीछैं = अनुकरण। साथि = साथ। मिल्या = मिला। दीया = दिया, प्रदान किया।

दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया विसाहुणां बहुरि न आँवौ हट्ट॥१२॥

सन्दर्भ—सतगुरु की कृपा से न केवल अंधानुकरण से ही उन्मुक्ति प्राप्त हुई और न केवल अज्ञान से अवकाश मिला। वरन् ज्ञान का ऐसा दीपक मिला जो अक्षय और अनन्त हो सतगुरु ने जो ज्ञान का दीपक प्रदान किया, उसमें अक्षय तेल, अघट्ट वाती और अनन्त प्रकाश भी था।

भावार्थ—सतगुरु ने प्रेमरूपी तैल से संयुक्त दीपक प्रदान किया, जो न घटने वाली वाती सम्पन्न था। दीपक के प्रकाश में शिष्य ने संसार रूपी बाजार में क्रय-विक्रय पूर्णं किया। अब इस संसार रूपी बाजार में पुनः नहीं आगमन होगा।

विशेष—प्रस्तुत साखी में ज्ञान के दीपक में प्रेम का तैल तथा अघट वाती वा उल्लेख किया है। क्रय-विक्रय प्रकाश में किया जाता है। संसार रूपी हाट में अज्ञान का अंधकार, माया का तम चारों ओर प्रसारित है। उस तम या अंधकार के कारण सुकृत का क्रय-विक्रय सम्भावित नहीं था। अब अघट वाती तथा अक्षय तेल युक्त ज्ञान का दीपक प्राप्त हो गया है। अब सुकृत तथा पुण्य का क्रम कर है। अतः जीवन्मुक्त होकर साधक अब पुनर्जन्म के क्रम में नहीं पड़ेगा।

शब्दार्थ—दीया = दिया = प्रदान किया। अघट्ट = अघट = न कम होने वाली। विसाहुणां = क्रय-विक्रय, खरीदारी। आवौं = आवो = आऊं = आना होगा। हट्ट = हट = हाट = बाजार। = अक्षय तेल लिया गया

ग्यान प्रकारया गुर मिल्या, सो जिनि वीसरि जाइ।
जब गोविन्द कृपा करी, तब गुर मिलिया आइ॥१३॥

सन्दर्भ—ज्ञान से सुशोभित एवं समलकृत गुरु की प्राप्ति एवं दर्शन बड़े भाग्य से होते है। ऐसे महान के दर्शन के भी ईश्वर की प्रेरणा और अनुकप का फल है। इस प्रकार का असाधारण, अद्भुत और अद्वितीय व्यतित्व अविस्मरणीय है।