पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८१३

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ग्रन्थावली जब लग घट मै दूजी आंण, तब लग महलिन पावै जांण ।

         रमित रांम सू ं लागै रग, कहै  कबीर ते निर्मल अग ।।
        शब्दार्थ--गमि==अगम्य अथवा द्वारा । सहर==पाठान्तर सुहरि, अथवा
 सहचर==आत्माराम ।  आदित==आदित्यवार, सूर्यवार-इतवार ।  मनसा ==सकल,
 प्रेम रूपी सकल्प । थभ= स्तम्भ। अहनिसि==दिन रात । रख्या==रखा जाए ।
 वाइ=वायु । माहीत==लगाओ । पच  लोक=पाँच विकार (काम, क्रोध लोभ, 
 मोह मत्सर) । पकज= सहस्त्रार । कुसमल==कल्मप । सुरषी = सुरक्षित, नियत्रित । 
 थवर==स्थावर । थिर==स्थिर । दीवाटि==दीप यष्टि, दीयाधार ।
      सदर्भ--कबीर योग-साधना विधि का वर्णन  करते हैं । सप्ताह भर के व्रतो
 का नवीन साधना-परक एव अध्यात्मिक अर्थ दिया गया है । 
       भावार्थ--कबीर कहते हैं कि प्रत्येक वार को हरि का गुणगान करना
 चाहिए । तब गुरू के द्वारा आत्माराम का कठिन रहस्य जाना जा सकता है ।
 रविवार के दिन इस भक्त्ति-साधना को आरम्भ करो । इसके लिए शरीर रूपी मदिर
 को भगवद्प्रेम के सकल्प रूपी खम्भे का आधार प्रदान करो । इससे अखण्ड नाम
 कीर्तन  की मधुर स्वरी दिन रात हृदय मे प्रवेश करेगी तथा अनहद नाद की वीणा
 भी सहज मे ही सुनाई देगी। सोमवार के दिन सहस्त्रार के चन्द्रमा से अमृत झरता
 है । उसके चखने मात्र से शरीर की तपन (कष्ट) से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती
 है । जीभ उलट कर अमृत के इस द्वार को रोक लेती है और इस रस मे मग्न मन
 इसको पीता रहता है । मगलवार को उस परम तत्व मे मन की  लौ लगा दो तथा 
 पाँचों विकारो की रीति छोड दो अर्थात्  काम क्रोधादि पच विकारो के वशीभूत 
 होना छोड दो । घर छोड कर बाहर मत जाओ (गृहस्थ  के  कर्तव्यो एव धर्म से 
 विमुख मत बनो) अन्यथा राजा राम बहुत रुष्ट हो जाएँगे । 
        बुधवार के दिन बुद्धि मे ज्ञान का प्रकाश करो । हृदय कमल मे भगवान का
 निवास है । गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान एव प्रेम को समान भाव से ग्रहण 
 करना चाहिए अथवा इडा-पिंगला को सम करे तथा  सहस्त्रार कमल को उलटे से
 सीधा कर दे--अधोमुखी  ऊध्वँमुखी कर देना चाहिए ।  वृहस्पतिवार को समस्त
 विषयो को फेकदे और तीनो देवताओ (त्रिगुण) को एक स्थान  पर लगादे--ब्रम्हा मे 
 लीन कर दे । त्रिकुटी स्थान की इडा, पिंगला और सुपुम्ना  तीन नदियो मे रात 
 दिन अपने कल्मपो तथा विषय-राग को धोता रहे । शुक्रवार  को साधना का अमृत 
 लेकर यह व्रत धारण कर कि मैं रात-दिन  अपने मन की कुवासनाओ से जूझता
 रहूँगा । इसके साथ पाँचो ज्ञानेन्द्रियो पर पूर्ण नियन्त्रण रखे । तब दूसरी दृष्टि 
 (द्वेत भावना अथवा अन्य साधना के प्रति आसक्ति)  व्यक्ति  के मन-मानस मे घुसेंगे
 ही नही । शनिवार को अपना हृदय स्थिर करे तथा अन्त करण मे उसी परम ज्योति 
 को प्रेम एव ज्ञानवृतियो के दीयाधार मे रखकर  प्रकाशित कर दे । इस ज्योति के 
 द्वारा बाहर-भीतर दोनो ही स्थानो पर प्रकाश होगा  और समस्त कर्मफल समाप्त