पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८३३

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ग्रनथावली] प्रहाद पधारे पढ़न साल, सग सखा लीवे बहुत बाल॥

  मोहि कहा पढ़ावै आल जाल, मेरी पाटी मै लिखि दे श्री गोपाल॥
  तब सनां मुरकां कह्यौ जाइ, प्रहिलाद बधऔ बेगि आइ॥
  तूॱ राम कहन की छाड़ि बांनि बेगि छुड़ाऊ मेरौ कह्यौ मांनि॥
  मोहि कहा डरावै बार बार,जिनि जल थल गिर कौ कियौ प्रहार॥
  बांधि मारि भावै देह जारि, जे हू रांम छाडौ तौ मेरे गुरहि गारि॥
  तब काढ़ि खड़ग कोप्यो रिसाइ, तोहि राखनहारौ मोहि बताइ॥
  खभा मै प्रगटचौ गिलारि, हरनाकस मारचो नख बिदारि॥
  महापुरुष देवाधिदेव,नरस्यंघ प्रकट कियौ भगति भेव।
  कहै कबीर कोई लहै न पार , प्रहिलाद ऊबारचौ अनेक बार ॥

शब्दार्थ--साल==चटसाल,पाठशाला। आल-बाल==इधर उधर की बातें। पाटी==पट्टी। सडा मुरका=सब लडको। गिलारि =मुरारि। सन्दर्भ--कबिर भगवान की भक्त-वत्समलता का वणंन करते हैं। भावार्थ-- मैं राम नाम छोड़ूँगा। मुझ को राम-नाम के अतिरिक्त ओर और कुछ पढ़ने से क्या काम है? प्रहलाद अनेक बाल-साखाओ के साथ पाठशाला मे पढ़ने के लिये गये। उन्होने अपने अध्यापक से कहा कि मुझे इधर-उधर की व्यर्थ की बातें क्यों पढ़ते हो ? मेरी तख्ती पर तो आप केवल 'श्रीगोपाल' लिख दे । इसके बाद सब लड़कों ने जाकार प्रहलाद के पिता से शिकायत की । वह तुरन्त ही आकर प्रह्लाद को बांधकर ले गये । उनहोने प्रहलाद से कहा कि तू राम-नाम कहने की आदत छोड़ दे । तू मेरा कहना मान जा । मैं तुझ को अभी हाल बन्धन मुक्त कर दूँगा । प्रहलाद ने उत्तर दिया " आप मुझे बारबार क्या डरा रहें हैं ? आप चाहें तो मेरे ऊपर जल थल पवंत कही भी ले जाकर प्राहार करें। मुझे बाँध कर मार दें, अथवा मेरी देह को जला दें। अगर मैं राम-नाम को छोड दूँगा तो मेरे गुरुदेव (अन्त करण की शुद्ध-चैतन्य व्रुत्ति) का अपमान होगा। तब पिता ने क्रोध पूर्वक तलवार निकाल कर कहा,"अब मुझे बता,तेरा रक्षक कहाँ है।" उसी समय खम्बे मे भगवान मुरारि प्रकट हुए और उन्होने हरिण्यकशिपु को नाखूनो से फाड कर मार डाला। भक्ति भाव ने महापुरुष एव सम्पूर्ण देवताओ के स्वामी नृसिंह भगवान को प्रकट किया था।कबीर कहते हैं कि उनकी शक्ती का पार कोई नहीं पा सक्ता है।उन्होने अनेक बार प्रहलाद सहश् भक्तो का उद्धार किया है।

    अलंकार--(1) वक्रोक्ति--मोहि"  काम।
         (२)ट्टष्टान्त--प्रहलाद "' बाल।
         (३)पदमँत्री--आल जाल। कानि,मानि। जल थल।
         (४)पुनरुक्ति प्रकाश-- बार बार।
         (५)सम्बन्धातिशयोक्ति-कोई लहै न पार।