पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८३७

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ग्रन्थावली ] [५३३ (१) जीवन के प्रति वैराग्य, भगवान के सर्वव्यापकत्त्व एव भगवन्नाम-स्मरण का प्रतिपादन है । (111) फुलनि मे"" निवास |-…समभाव देखिए---- ज्यो तिल माही तेल है, ज्यो चकमक में आग | तेरा साई तुज्झ् में जाग सकै तो जाग । तेरा साई तुज्झ् मे, ज्यू", पुहुपन में वास | कस्तूरी के मिरग ज्यूँ ,फिरि-फिरि सू'घे घास । ( ३८३ ) मेरे जैसे बनिज सों कवन काज, मुल घटै सिरि बधै ब्याज|। टेक || नाइक एक बनिजारे पांच, बैल पचीस कौ संग साथ || नव बहियां दस गौंनि आहि, कसनि बहतरि लागे ताहि || सात सूत मिलि बनिज़ कीन्ह, कर्म पयादौ सग लीन्ह । । तीन जगाती करत रारि चल्यौ है बनिज वा बनज झारि || बनिज खुटानों पू जि टूटि, षाडू दह दिसि गयौ फूटि || कहै कबीर यहु जन्म बाद, सहजि समांनू रही लादि || शब्दार्थ -- बनिज== व्यापार अथवा व्यापारी । वनजारे== टांडा लादकर चलने वाले व्यापारी । कसनि=कसनियाँ | गवनि=गुनें, बोरियाँ । सात सूत== सात धातु | जगाती== कर लेने वाले | खटानों= समाप्त हो गई | टाडो== सामान| संदर्भ-- कबीरदास वासनामय जीवन की निरर्थकता का वर्णन करते हैं । भावार्थ-मेरे द्वारा किए जाने वाले व्यापार से क्या लाभ हो सकता है, जिसमे मूल धन (आत्म तत्त्व) घटता जाता है और बघन के हेतु कर्म-रूपी व्याज की वृद्धि होती जाती है । नायक एक है और पाँच बनजारे (पांच ज्ञानेन्द्रियाँ) हैं । (जो विषय भोगो को खरीदते हैं |) शरीर के २ ५ प्रकृति रूपी पच्चीस बैल विषायो का बोझ ढोते हैं । इन बैलो पर नापने के नौ हाथ (चार अन्त करण एव पच प्राण) तथा दस इन्द्रियों (उनके विषय) रूपी दस बोरियाँ लदी हुई हैं । इनको शरीर की बह्न्तर नाडियो रूपी रस्सियो से बाँधा गया है | सात धातुओं ने मिलकर शरीर के इस व्यापार को मालूम किया था और भाग्य रूपी प्यादे (पैदल चलने वाला सैनिक) को अपने साथ ले लिया था (वही मार्गदर्शक एव रक्षक है |) सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण रूपी ये तीन कर (टैक्स) उगाहने वाले झगडा कर रहे हें | इन्होंने कर के लिए इतना झगडा किया अथवा झगडा करके इन्होंने इतना कर वसूल कर लिया कि इस जीवन रूपी व्यापारी को सम्पूर्ण जीवन रूपी वाणिज्य की साम़ग्री इन तीनो गुणो को समर्पित कर देनी पडी और जीव रूपी व्यायापारी यहाँ से हाथ झडकर चल दिया । अब तो व्यापार समाप्त हो गया (उसमें टोटा आ गया है), पूँजी कम पड गई है और यहु चैतन्य रुपी टांडा दस इरिन्द्रयो रुपी दसो