पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८४७

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ग्रन्थग्रवली ] [ ८ ४ ३

(श) कबीर के ऐसे कथनों को अर्यवादी ही मानना चाहिए । इस पद मे वर्णित घटनाओं को कबीर ने सत्य माना हो-यह आवश्यक नही है । भगवान की शक्ति करुणा आदि गुणों की व्यजना ही उन्हें अभिप्रेत है। कबीर की भगवान की दयालुता, भक्त वत्सलता आदि से आस्था थी इसमें कोई सदेह नही है । उन्हें हम सगुणोपासक मान सकते हैं, परन्तु तुलसी सूर प्रभूति भक्त कवियों की भाति साकारो-, पासक नहीं मान सकते है । और फिर बात वहीं है 1 भारतीय मन-मानस को प्रभावित करने के लिए पौराणिक आख्यानों की चर्चा के विना काम नहीं चल सकता है ।

                          ( ३९१ )
              विष्णु ध्यांन सनान करि रे, बाहरि अंग न धोइ रे ।
              साच बिन सीझसि नहीं, क ई ग्यान दृष्टि जोइ रे ।। टेक ।।
              जजाल महिं जीव राखे, सुधि नहीं सरीर रे ।।
              अभिअतरि भेदै नही, कांई बाहरि म्हावे नीर रे ।
              निहकर्म नदी ग्य८न जल, सुनि मडल मांहि रे ।।
              औधूत जोगी आतमां, काई पेर्ण सजमि न्हाहि रे ।
              इला प्यगुला सुष्मनां, पछिम गगा बालि रे ।।
              कहै कबीर कुसमल झड़े, कांई मांहि लौ अग पषालि रे ।

शब्दार्थ-अभिअन्तरि-आम्यन्नतर, हृदय, मन । सीझसि--, सिद्धि है । जोइ==दिखाई देता है । औधूत-अवधूत साधक, हठयोगी साधक । सजाम= सयम । कुसमल- पाप । झड़े = धुल जाएँगे । पषालि=धोले । वालि= सुषुम्ना । पछिम =सुपुम्ना । गगा=इडा । सन्दर्भ-कुछ साधक बाह्य साधनो एव साधनाओं से व्यर्थ समझ एव शक्ति खोते रहते हैं और अन्तरात्मा को निर्मल नहीं बनाते हैं । कबीरदास इन्हीं को सावधान करते हैं । भावार्थ-- कवीरदासजी शरीर को मल-मल कर स्नान करने वाले साधकों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि विषणु-ध्यान का स्नान करो बाहर से अगो को मत धोते रहो । भाव यह है कि पानी से शरीर के वाह्यागो को धोने से कोई लाभ नहीं होगा भगवान् का व्यान करके अपने मन को निर्मल बनाना ही मुख्य काम है । सत्य के विना सिद्धि की प्राप्ति नहीं होती है अत ज्ञान दृष्टि से देखने का प्रयत्न क्यो नहीं करते हो ? तूने अपने जी को जगत् के जजाल में डाल रखा है और तुझको अपने शरीर का भी होश नहीं है । भाव यह है कि तू विषय के मौहक्या अपने शरीर के स्वास्थ्य के प्रति भी असावधान हो गया है । अपने अन्दर प्रवेश नही करते हो अर्थात् आत्म-चिन्तन से विमुख हो । ऐनी स्थिति ने बाहर जल से क्या स्नान करते हो-बाहरी टीमटाम से कोई लाम नही है । शून्य मण्डल में निष्काम कर्म की नदी बहती है उसमे ज्ञान का जल है । जो योगी सयम के द्वारा उस नदी में स्नान करता|