पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८५८

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९४] [कबीर भोजन का स्वाद लिया।धीरे धीरे करके तुम मोह मे फँसते गये। जब तुम बडे हुए तो तुमको कटु और मधुर की पहचान होने लगी। इस समय तुम पाँचो इन्द्रियो के दिपय रस का भोग करने लगे। जवानी की तेजी प्राप्त होने पर तुम स्त्री के मुख की ओर टकटकी लगाए रहे और उसका भोग करते समय तुमने अवसर कुअवसर का ध्यान नही रखा। उस समय तुम अत्यन्त उच्छृं खल(विवेक शून्य)होकर आप के बाहर हो गये तथा तुम्हे पाप-पुण्य का विवेक नही रहा। केश भूरे होकर पुष्पों की भाँति एक दम सफेद हो गये। और वाणी मे भी फर्क आ गया। वात पीछे आने वाला क्रोध समाप्त होगया और ह्र्दय दया रूपी पावस ऋतु से गीला रहने लगा(dainy आगया)काम की प्यास भी मंद पड गई। अहंकार की गाँठें समाप्त हो गई और स्वय के प्रति दया एंव करुणा के भाव जाग्रत होने लगे। (इस वृध्दावस्था में)कायारूपी कमल मुरभा जाता है। मरते समय पश्चाताप की वेदना से दुखी होता हे,अपने अतीत पर पछताने लगता है। परन्तु इस समय पछताने से क्या होता है? कबीरदास कहते हें कि हे सतो। सुनो,धन,सम्पत्ति (आसत्कि के विषय)कुछ भी तुम्हारे साथ नही जा सकेगा। जब राजा गोपाल का आदेश आता हे,तब प्राणी को उसी समय धरती पर सो जाना पडता है।

        अलंकार--(I)पुनरुक्ति प्रकाशछिन chin ।
               (II)अनुप्रास--तरण तेज विष,पाप पुनि पिछनै।
               (III)भग पद यमक--सर अवसर।
               (IV)उपमा--कुसुम भये धोला।
               (V)रूपक--काया कमल।
        विशेष--(I)पावस--लाक्षणिक प्रयोग है।
        (II)संसार की असारता,निस्सारता एंव नश्वरता का प्रतिपादन है।
        (III)'निर्वेद'की व्यजना है।
        (IV)छ रस मधुर,अम्ल,लवण,कटु,कपाय और तिक्त।
                          (४०२)
           लोका मति के भोरा रे।
           जौ कासी तन तजै कबीरा,तौ रांमहि कहा निहोरा रे॥ टेक ॥
           तव  हम  वैसे अब  हम ऐसे, इहै जनम का लाहा  ।
           ज्यू जल मै जल पैसि न निकसै, यु ढुरि मिल्या जुलाहा॥
           राम भगति परि जाकौ हित cit,  ताकौ अचिरज काहा।
           गुर प्रसाद साव की संगति, जग जीतें जाइ जुलाहा  ॥
           कहै  कबीर  सुनहु रे संतो,  भ्रंमि परे जिनि  कोई  ।
           जस कासो तस मगहर ऊसर, हिरदै रांम सति होई  ॥
          शध्दार्थ--रोका=समार के लोग।निहोरा = अनुरोध,प्रार्थना।
          सन्दर्भ--कबीरदास अंध विशवामो का खण्डन करते हुए कहते है।