पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/८६८

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बार-बार आना पडता हैं।उससे मुक्ति प्राप्त करने के लिये हे जीव।तू भगवन्नाम का अभ्यास कर।यह संसार का जीवन तो जल की तरड्गति में उपलब्ध म ज्ञान-चर्चा की उपेक्षा क्यो करते हो?भक्ति से रहित जीव का जीवन वास्तव मे कुछ नही हैं। वह तो उत्पन्न होता हैं और फिर नष्ट हो जाता हैं। (वह अनेक बार जन्म लेता है और मरता है - बस इसी क्रम मे फसा रहता हैं।)हे जीव,तुम भले ही अनेक आश्रमों(ब्रह्मचर्य,ग्रुहस्त,वान्प्रस्त तथा सन्यास) का पालन करो,परन्तु भगवान राम कि भक्ति के बिना तुम्हारि कोइ रक्षा नही करेगा।

                   अलंकार-(१) रूपक-उदर-कूप।
                         (२)उपमा-जैसे लहरि तरड्गा।
                         (३)विशेषोक्ति की व्यंजना-आश्रम' 'कोइ न करे प्रतिपाल।
                   विषेश-(१)निर्वेद सचारी कि व्यंजना हैं।
                        (२)ज्ञान-भक्ति के प्रकाश को न देख सक्ने वाले प्राणी को 'चुघा' कह्कर अज्ञानि के स्वरूप को मूर्तिमत्ता प्रदान कर दी है।
                               (७)
सोई उपाव करि यहु दुख जाइ,ए सब परहरि बिसै सगाइ॥

माध मोह जरै जग ठीगी,ता सगि जरसि कवन रस लागी। त्राहि त्राहि करि हरी पुकारा,साध सगति मिलि करहु विचारा॥ रे रे जीवन नहि बिश्रांमां,सब दुख खनडन राँ को नांमां। राम नाम संसार मे सारा,राम नाम भौ तारन हारा॥

सुम्त्रित बेद सवै सुनै,नहि आवै क्रुत काज।
नही जैसे कुंडिल बनित मुख मुख सोभित बिन राज॥

शब्दार्थ

- सगाई = सम्बन्ध । भौ=संसार।सुम्त्रित-स्म्रुति, धर्मशास्त्र।

संदर्भ - पूर्व रमैणी के समान। भावार्थ-रे जीव तुम को वहि उपाय कर्न चहिये जिस्से यह संसार का(आवागमन का) दुःख दूर हो।इन समस्त विपयो(भोगेच्छाओ)तथा संसारिक सम्बधों को त्याग दो।यह सार संसार माया-मोह कि आग मे जल रहा हैं।तुम किस आनंद के लोभ फसकर इस विपयाग्नि के सात जल्ना चाहते हो? हे जीव,दीनतापूर्वक भग्वान से रक्षा को पुकार करो तथ साधुओं कि संगति मे बैठ कर उस परम तत्व का चिन्तन करो।हे जीव,तुम्हे कहि अन्यत्र सुख-शांति नहि मिलेगि। भगवान राम का नाम ही समस्थ दुःखों को मिठ्ने वाला हैं। राम नाम ही सारा वस्तु है और यहि भवसागर से पार कर्ने का साधन है। धर्म्शास्त्र,वेद आदि सब सुन लो,परन्तु इनमे कोई भी पुण्य कार्य नहि होत है अर्थाथ यह सब(राम-भक्ति के अभाव मे)व्यर्थ ही रह्ते है,जैसे कुण्डल आदि आभूषणो से युक्त नारि का मुख सोभाग्य-चिन्ह के अभाव मे सुशोभित नहीं होता है।