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[कबीर की साखी
 

कता का आशीर्वाद दिया और फलतः कबीर ने बहुमूल्य पदार्थों का वाणिज्य किया। यह वाणिज्य हीरे का था।

भावार्थ—गुरु से दीक्षा समाप्त हुई और धैर्य का वरदान मिला। कबीर ने मानसरोवर के तट पर हीरा का वाणिज्य किया।

विशेष—यहाँ साधना की उन तीन अवस्थाओं का कबीर ने उल्लेख किया है जिसका कवि स्वतः ने अनुभव किया था। थापरिण या स्थापना से अनन्तर धैर्य और तदनन्तर साधक द्वारा हीरा का वाणिज्य। (२) स्थापना या दीक्षा के अनन्तर ही शिष्य को सतगुरु से धैर्य धारण की साधना-पथ पर अग्रसर होने का आशीर्वाद मिला। फलतः साधना में रत रह कर कबीर ने मानसरोवर के तट पर हीरा रूपी हरि का वाणिज्य। (६) थापणि... भई-दीक्षा के अनन्तर थिति मिली।

शब्दार्थ—थापणि = स्थापना। थिति = स्थिरिता। धीर-धैर्य। वणजिया-वाणिज्य किया। तीर-तट।

निश्चल निधि मिलाइ तत, सतगुर साहस घीर।
निपजी मैं साझी घणां, बाँटे नहीं कबीर॥३०॥

संदर्भ—सतगुरु के अमोघ दान के फलतः जीवन में सब कुछ सब प्राप्य उपलब्ध हो गया। दुर्लभ ब्रह्मानुभूति प्राप्त हो गई। भवसागर में भटकती हुई जीवन नौका को लक्ष्य एवं गंतव्य प्राप्त हो गया ब्रह्मा की अनुभूति का आनन्द अविभाज्य एव अभिव्यक्ति से परे हैं या असम्प्रेषणीय है।

भावार्थ—सतगुरु द्वारा प्राप्त साहस एव धैर्य के फलतः अमर निधिरूप सार तत्व समाप्त हो गया। परमतत्व के साक्षात्कार से समुत्पन्न आनन्द को बांटने के लिये सभी समुत्सुक है पर कबीर उसे सम्प्रेषित नहीं कर पाता है।

विशेष—विगत साखी में कबीर ने हरि के लिए "हीरा" शब्द का प्रयोग किया है और इस साखी में "निहचल निधि" का प्रयोगब्रह्म तत्व के अर्थ में किया है। लौकिक जीवन में हीरा या निधि माया का प्रतीक है। प्रश्न होता है कि कबीर ने माया की इतनी भर्त्सना की है फिर भी माया के प्रतीकों को ब्रह्म तत्व के लिए क्यों प्रयोग किया है बात यह है कि सांसारिक जीवन में हीरा बहुमूल्य वस्तु मानी गई है। उसी प्रकार ब्रह्म साधनात्मक जीवन में बहुमूल्य उपलब्धि है हरि रूपी निधि और हीरा साधनात्मक जीवन में उसी प्रकार बहुमूल्य है यथा लौकिक जीवन के माया के प्रतीक धन या हीरा। (२) तन = तत्व-ब्रह्म तत्व। (३) निपजी ...कबी—ब्रह्मानुभूति का आनन्द यविभाजनीय है असम्प्रेणीय है। वह आनन्द स्वतः अर्जित किया जाता है, उधार में नहीं प्राप्त होता है।