पृष्ठ:Kabir Granthavali.pdf/९१५

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शब्दार्थ-सारा=साला, पत्नी का भाइ। सूतिग=जन्म का अशौच। पातिग=पातक (ब्रह्म हत्या, सुरापान, गुरुतल्पगमन, स्तेय और पातकी का ससर्ग।

        सन्दर्भ-कबीरदास परम तत्व का आइकिकता का वर्णन करते हैं।
        भावार्थ-उस परम तत्व का न कोइ शब्द है, न कोइ स्वाद और न गंध ही। उसके कोइ माता-पिता नही है और न उसको किसी प्रकार का मोह सताता है। न उसके सास-श्वसूर है और न्न साला ही है। न उसके लिये कोई रोता है और न रोने वाला ही है। उसके लिये जन्म-मृत्यु के अशौच नही हैं। उसके कोई आराध्या भाई नही है और न उसके लिये देव-कथा पीठ है। उसके यहाँ वृध्दि (कुल-वृध्दि) का कोइ अवसर नही है और न इस कारण उसके यहाँ कभी मंगल-गीत होते हैं। उसके यहाँ किसी प्रकार के गीत-नाद का आयोजन नही होता है। उसकी न कोइ जाती-पाँति है और न कोइ कुल परम्परा ही है। और न उसके यहाँ छुआछुत और पवित्रता की ही बात है। कबीरदास विचार करके कहते हैं कि जो अतीत वस्तु है, वह तो पद निवार्ण है। हे जीव, तुम सत्य तत्व को अपने ह्रदय मे धारण करे। वहाँ कोइ अन्य तत्व नही है। वह द्वैत राहित अद्वैत तत्व है।
        अलंकार-(१) अनुप्रास-सबद स्वाद सोहा। व्रिध, वधावा वाजै।
              (२)पदमैत्री-धूतिग पातिग जातिग।
        विशेष-उस परम तत्व का वर्णन शब्दातीत है, साथ ही लौकिक उपमानो के द्वारा भी उसका निरुपण सम्भव नही है। वह तो वस्तुत्ः स्वय्ं सिध्द अनिर्वचनीय तत्व है।
                                  (४२)
      नां सो सावै नां सो जाई, ताक बध पिता नहीं माई॥
      चार बिचार कछू नही वाकै, उनमनि लागि रहौ जे ताकै॥
      को है आदि कवन का कहिये, कवन रहनि वाका ह्यै रहिये॥
            कहै कबीर बिचारि  करि, जिनि को खोजै दूरि।
            ध्यांन धरौ मन सुध करि, रांम रह्या भरभूरि॥
        शब्दार्थ-उन्मनि=उस अवसथा का धोतक है जब मन भावाभाव अवसथा से विनियुक्त रहता है, उसे अपने ही होने न होने की चेतना नही रहती है। यह साधना कबीर के 'सहजयोग' का एक आवश्यक तत्व है।
        सन्दर्भ-पूर्व पद के समान।
        भावार्थ-वह परम तत्व न आता है और ना जाता है ( अर्थात् वह जन्म-मरण के परे है)। उसके भाइ, पिता और माता नही हैं। (वह सांसारिक सम्बन्धो से परे है।) उसको किसी प्रकार के लैकिक आचार-व्यवहार का पालन नही करना पड़ता है। वह तो उनमनि (समाधि) अवसथा मे रेह कर जगत को साक्षी रूप से देखता रहता है। आदि तत्व क्या है, इसके सम्बन्ध मे कौन क्या कह सकता