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सुमिरन कौ अंग ]
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मे वह भीगकर विशुद्ध हो गया । (२) आत्मा, असार, अशुभ और अपवित्र तत्वो से परिवेष्ठित थी । प्रेम के जल से धुल कर वह स्वच्छ हो गई । (३) शरीर रूपी यह चनराय प्रेम के जल से सिंचित होकर हरा-भरा हो गया । (४)"अंतरि भीगो आत्मा" तात्पर्य है अतस (या मन) तथा आत्मा दोनो प्रेम के बादल से आर्द्र हो गये ।

शब्दार्थ—परि = पर । बरष्या = बरसा । अंतरि = अंतर । भई = हुई । चनराइ = चनराय ।

पूरे सूँ परचा भया, सब दुःख मेल्या दूरि ।
निर्मल कीन्ही आत्मा, ताथै सदा हजूर ॥३५॥

सन्दर्भ—सतगुरु की कृपा से, उसके आशीर्वाद से पूर्ण ब्रह्म से परिचय प्राप्त हो गया और भव सागर के समस्त ताप दूर हो गए । सर्वत्मा से मिल कर यह आत्मा विशुद्ध हो गई ।

भावार्थ—पूर्ण ब्रह्य से परिचय हुआ और सब दुःख दूर हो गये । आत्मा निर्मल हो गई और प्रभु ( या ब्रह्म ) से संलग्न हो गई ।

विशेष—(१) उपनिषदो मे ब्रह्म को पूर्ण अभिव्यक्त करते हुए कहा गया है "पूर्णमदः पूर्णमिदः पूर्णविपूर्ण मुदच्चते । पूर्णस्य् पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।" उपनिषदो के उसी पूर्ण भाव को कबिर ने यहाँ ग्रहण करके उस ईश्वर को "पूरा" कहा है । "एक सद्विप्रा बहुषा बदन्ति ।" उस पूर्ण ब्रह्म से परिचय हो जाने के अनन्तर समस्त दुःख दूर हो गये । निर्गुण, निराकार, निर्विकार ब्रह्य से साक्षात्कार होते ही आत्मा विशुद्ध हो गई । मलीन दारी काम क्रोधादि मे अनुरक्त शरीर मलीन हो गया था, सो अब पवित्र हो गई ।

शब्दार्थ—सूं = से । परचा= परिचय । मेला = फैका । दूरि = दूर । हजूरि = हुजूर = स्वमी ।

२. सुमिरन को अंग

कबिर कहता जात हुँ, सुणता है सय कोइ ।
राम कहें भला होइगा, नहिं तर भला न छोइ ॥२॥

सन्दर्भ—राम नाम पत्याण का अक्ष्य स्त्रोत है । उन्के अभाव मे मानव का भला या कल्याण नहीं होगा । नाम खगता विकारों के लिए औपधि है ।