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[ कबीर की साखी
 

  भावार्थ—कबीरदास कहते है कि मैं यह बराबर केहता जा रहा हुँ और सब मेरा कथन सुनते जा रहे है। राम कहने से, जपने से ही कल्याण होगा। अन्यथा कल्याण नही होगा।

विशेष—"कबीर......हूँ" से तात्पर्य है कि कबीर अनुभव तथा दृढ़ विश्वास को प्रकट कर रहे है ।(२) सुंणता है.......कोई = से तात्पर्य है सब मेरे कथन को सुन रहा है ।(३) राम.....होई = राम नाम जप ही कल्याण का स्त्रोत है । उनके अभाव मे माया के विकार अपना प्रभाव प्रसारित करते जायेंगे ।

शब्दार्थ—सुणता = सुनता । तर = तो । भला = कलयाण ।

कबीर कहै मैं कथि गया, कथि गया ब्रह्म महेस ।
राम नाँव ततसार है, सब काहू उपदेश ॥२॥

सन्दर्भ—विगत साखी मे कबीर ने कहा है "कबीर कहता जात हुँ सुणता है सब कोइ।" यहाँ पर कबीर ने उसी भाव को पुन: व्यक्त किया है कि जो मैं कह रहा हुँ वह परम्परागत या सनातन सत्य है । वह सत्य ब्रह्मा और महेश द्वारा भी समर्पित है । संसार मे राम नाम ही तत्व सार है ।

भावार्थ—कबीर कहते है कि मैं यह कह चुका हूँ और यही मेरा सब को उपदेश है कि संसार मे राम नाम ही तत्व और सार वस्तु हैँ । यही ब्रह्या और महेश का भी कयन है ।

विशेष—प्रस्तुत साखी मे कवि ने परम्परागत चिर समर्थित सत्य की अभिव्यक्ति की है । कबीर नाम के महत्व के सम्बन्ध मे परम्परागत सत्य को प्रकट करते हुए उसके महत्व को उपदेश के रूप मे व्यक्त करते हैं। राम नाम समस्त साधना का तत्व और सार है ।

(२) सत दरिया ने भी इसकी प्रस्तुत विशेषता की ओर संकेत करते हुए कहा है "राम नाम निजु सार है " कबीर दास दरिया के शब्दो का समर्थन करते हुए केहते है "नाम सरोवर सार है सोह सुरत लगाय"।

शब्दार्थ--कथि = कहि । नवि = नाम । तत = तत्व । काहू = को । कहै = कहता है ।

तत तिलक तिहुँँ लोक मैं, राम नाँव निज सार |
जन फबीर मस्तक दिया, सोभा अधिक अपार ॥३॥

सन्दर्भ—संसार मे राम नाम समस्त साधना का तत्व है । बारम्बार कबीर ने इसी भाव पर बल दिया है । जीवन और व्यक्तित्व नाम के सम्पर्क से और भी अधिक सुशोभित हो गया ।