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[कबीर की सखी
 

“भगति भजन हरि नांव है, दूजा दुक्ख अपार।" उसी भाव को अधिक विस्तार के साथ यहां व्यक्त करते हुए कबीर ने पूर्व भाव पर बल दिया है।

भावार्थ — कबीर कहते है कि नाम स्मरण ही समस्त साधना का सार तत्व है। नाम-जप के अतिरिक्त समस्त साधना जंजाल है। मैने आघोपांत समस्त साधनाओ को शोघा (देखा) लिया, नाम के अतिरिक्त सब काल है, विनाशकारी है।

विशेष — (१) सुमिरण सार है-समस्त साधनाओ का सार तत्व। नाम स्मरण समस्त साधना का सारांश है। सुन्दर दास का भी मत है कि "सकल सिरोमनि नाम है, सब धरमन के माहि । अनन्य भक्ति वह जानिये, सुमिरन भूलै नाहि।" (२)"और सकल जजाल" नाम जप के अतिरिक्त और सब जंजाल है, माया है,चाहाचार है।" (३) आदि ...... सोघिया" से तात्पर्य है आघोपांत सब कुछ सब साधना का मूल्यांकन किया। (४)"दूजा....काल" नाम के अतिरिक्त सब काल या विनाशकारी है।

शब्दार्थ—सोघिया= शोघा । दूजा = दुसरा । काल= विनाशकारी ।

च्य्ंता तौ हरि नांव की, और न चिंता दास।
जे कुछ चितवैं राम विन,सोइ काल की पास ॥६॥

सन्दर्भ — विगत साखी की द्वितीय पंक्ति मे कबीर ने राम नाम की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा है "आदि अन्त सब सोधिया , दूजा देखौं काल" प्रस्तुत साखी मे कबीर ने उसी भाव को दुसरे शब्दो मे व्यक्त करते हुए कहा है" जे कुछ चितवै रामविन, सोई काल की पास।" सच्चे साधक को हरिनाम की चिन्ता रहती है। हरिनाम के अतिरिक्त जो कुछ अन्य है वह काल या विनाशकारी है।

भावार्थ—हरिभक्त या हरि के दास को एक मात्र चिन्ता हरिनाम या नाम जप को रहती है। इसके अतिरिक्त उसे और कोई चिन्ता नही रहती है। राम के अतिरिक्त और जो कुछ देखा या चिन्तन किया जाता है वह काल का विनाश का वाण है।

विशेष—(१) प्रस्तुत साखी मे कबीर ने हरि के नाम के साधक की निष्ठा तथा लगन की ओर संकेत किया है हरिदास एकग्रता के साथ,निष्ठा के साथ हरि का चिन्तन करता है । (२) राम के नाम या राम की स्थिति से विहीन जो कुछ है,वह सब विनाश या माया है। (३)'नारद पुराण' में भी इसी प्रकार उल्लेख हुआ है "हरे नमि हरे नमि , हरे नमिव के वल्भू। क्लौ नारत्येव नास्त्येव गतिरन्यया।"(४/४९/११५)।