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माटी,जल
और ताप की तपस्या
मरूभूमि में बादल की हल्की-सी रेखा दिखी नहीं कि बच्चों की टोली एक चादर लेकर निकल पड़ती है। आठ छोटे-छोटे हाथ बड़ी चादर के चार कोने पकड़ उसे फैला लेते हैं।टोली घर-घर जाती है और गाती है:
हर घर से चादर में मुट्ठी भर गेहूं डाला जाता है। कहीं-कहीं बाजरे का आटा भी। मोहल्ले की फेरी पूरी होते होते, चादर का वजन इतना हो जाता है कि आठ हाथ कम पड़ जाते हैं। चादर समेट ली जाती है। फिर यह टोली कहीं जमती है, अनाज उबाल कर उसकी गूगरी बनती है। कण-कण संग्रह बच्चों की टोली को तृप्त कर जाता है।