आया बिरखा और व्रखा है। घन का, बादल का सार, घणसार है। एक नाम मेवलियो भी है। बूंदों की तो नाममाला ही है। बूला और सीकर जलकण के अर्थ में हैं। फुहार तथा छींटा शब्द सब जगह प्रचलित हैं। उसी से छांटो, छांटा-छड़को, छछोहो बने हैं। फिर नभ से टपकने के कारण टपका है, टपको और टीपो है। झरमर है, बूंदा-बांदी। यही अर्थ लिए पुणंग और जीखा शब्द हैं। बूंदा-बांदी से आगे बढ़ने वाली वर्षा की झड़ी रीठ और भोट है। यह झड़ी लगातार झड़ने लगे तो झंड़मंडण है।
चार मास वर्षा के और उनमें अलग-अलग महीने में होने वाली वर्षा के नाम भी
अलग-अलग। हलूर है तो झड़ी ही, पर सावन-भादों की। रोहाड़ ठंड में होने वाली छुटपुट वर्षा है। वरखावल भी झड़ी के अर्थ में वर्षावलि से सुधरकर बोली में आया शब्द है। मेहांझड़ में बूंदों की गति भी बढ़ती है और अवधि भी। झपटो में केवल गति बढ़ती है और अवधि कम हो जाती है - एक झपट्टे में सारा पानी गिर जाता है।
त्राट, त्रमझड़, त्राटकणो और धरहरणो शब्द मूसलाधार वर्षा के लिए हैं। छोल शब्द भी इसी तरह की वर्षा के साथ-साथ आनंद का अर्थ भी समेटता है। यह छोल, यह आनंद सन्नाटे का नहीं है। ऐसी तेज वर्षा के साथ बहने वाली आवाज सोक या सोकड़ कहलाती