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राजस्थान की रजत बूंदें

पसीने में तरबतर चेलवांजी कुंई के भीतर काम कर रहे हैं । कोई तीस-पैंतीस हाथ गहरी खुदाई हो चुकी है। अब भीतर गरमी बढ़ती ही जाएगी। कुंई का व्यास, घेरा बहुत ही संकरा है। उखरूं बैठे चेलवांजी की पीठ और छाती से एक-एक हाथ की दूरी पर मिट्टी है। इतनी संकरी जगह में खोदने का काम कुल्हाड़ी या फावड़े से नहीं हो सकता। खुदाई यहां बसौली से की जा रही है। बसौली छोटी डंडी का छोटे फावड़े जैसा औजार होता है। नुकीला फल लोहे का और हत्था लकड़ी का।

कुंई की गहराई में चल रहे मेहनती काम पर वहां की गरमी का असर पड़ेगा। गरमी कम करने के लिए ऊपर जमीन पर खड़े लोग बीच-बीच में मुट्ठी भर रेत बहुत राजस्थान की जोर के साथ नीचे फेंकते हैं। इससे ऊपर की ताजी हवा नीचे फिकाती है और गहराई में जमा दमघोंटू गरम हवा ऊपर लौटती है। इतने ऊपर से फेंकी जा रही रेत के कण नीचे