पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/२४

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काम कर रहे चेलवांजी के सिर पर लग सकते हैं इसलिए वे अपने सिर पर कांसे, पीतल या अन्य किसी धातु का एक बर्तन टोप की तरह पहने हुऐ हैं। नीचे थोड़ी खुदाई हो जाना के बाद चेलवांजी के पंजों के आसपास मलवा जमा हो गया है। ऊपर रस्सी से एक छोटा-सा डोल या बाल्टी उतारी जाती है। मिट्टी उसमें भर दी जाती है। पूरी सावधानी के साथ ऊपर खींचते समय भी बाल्टी में से कुछ रेत, ककड़-पत्थर नीचे गिर सकते हैं। टोप इनसे भी चेलवांजी का सिर बचाएगा।

चेलवांजी यानी चेजारे,कुंई की खुदाई ओर एक विशेष तरह की चिनाई करने वाले दक्षतम लोग। यह काम चेजा कहलाता है। चेजारो जिस कुंई को बना रहे हैं, वह भी कोई साधारण ढांचा नहीं है। कुई यानी बहुत ही छोटा-सा कुआं। कुआं पुलिंग है, कुंई स्त्रीलिंग। यह छोटी भी केवल व्यास में ही है। गहराई तो इस कुंई की कहीं से कम नहीं। राजस्थान में अलग-अलग स्थानों पर एक विशेष कारण से कुंइयों की गहराई कूछ कम-ज्यादा होती हैं।

कुंई एक और अर्थ में कुएं से बिलकुल अलग है। कुआं भूजल को पाने के लिए बनता है पर कुंई भूजल से ठीक वैसे नहीं जुड़ती जैसे कुआं जुड़ता है। कुंई वर्षा के जल को बड़े विचित्र ढंग से समेटती है - तब भी जब वर्षा ही नहीं होती! यानी कुंई में न तो सतह पर बहने वाला पानी हैं, न भूजल है। यह तो 'नेति-नेति" जैसा कुछ पेचीदा मामला है।

मरुभूमि में रेत का विस्तार और गहराई अथाह है। यहां वर्षा अधिक मात्रा में भी हो तो उसे भूमि में समा जाने में देर नहीं लगती। पर कहीं-कहीं मरुभूमि में रेत की सतह के नीचे प्राय: दस-पंद्रह हाथ से पचास-साठ हाथ नीचे खड़िया पत्थर की एक पट्टी चलती है। यह पट्टी जहां भी है, काफी लंबी-चौड़ी है पर रेत के नीचे दबी रहने के कारण ऊपर