पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/३६

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पड़ता है। एक पूरी पीढ़ी कुंडी को इतने समार, यानी संभाल कर रखती है कि दूसरी पीढ़ी को ही उसमें सीढ़ियों से उतरने का मौका मिल पाता है। पिछले दौर में सरकारों ने कहीं- कहीं पानी का नया प्रबंध किया है, वहां कुंडियों की रखवाली की मजबूत परंपरा जरूर कमजोर हुई है।

कुंडी निजी भी हैं और सार्वजनिक भी। निजी कुंडियां घरों के सामने, आंगन में, हाते यानी अहाते में और पिछवाड़े, बाड़ों में बनती हैं। सार्वजनिक कुंडियां पंचायती भूमि में या प्राय: दो गांव के बीच बनाई जाती हैं। बड़ी कुंडियों की चारदीवारी में प्रवेश के लिए दरवाजा होता है। इसके सामने प्राय: दो खुले हौज रहते हैं। एक छोटा, एक बड़ा। इनकी ऊंचाई भी कम ज्यादा रखी जाती है। ये खेल, थाला, हवाड़ो, अवाड़ो या उबारा कहलाते हैं। इनमें आसपास से गुजरने वाले भेड़-बकरियों, ऊंट और गायों के लिए पानी भर कर रखा जाता है। सार्वजनिक कुंडियां भी लोग ही बनाते हैं। पानी का काम पुण्य का काम है। किसी