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राजस्थान की रजत बूंदें

इन इलाकों में पिछले दिनों जल संकट 'हल' करने के लिए जितने भी नलकूप और 'हैंडपंप' लगे, उनमें पानी खारा ही निकला। पीने लायक मीठा पानी इन कुंड, कुंडियों में ही उपलब्ध था। इसलिए बाद में अकल आने पर कहीं-कहीं कुंडों के ऊपर ही 'हैंडपंप' लगा दिए गए हैं। बहुप्रचारित इंदिरा गांधी नहर से ऐसे कुछ ही क्षेत्रों में पीने का पानी पहुंचाया गया है और इस पानी का संग्रह कहीं तो नई बनी सरकारी टंकियों में किया गया है और कहीं-कहीं इन्हीं पुराने कुंडों में।

इन कुंडियों ने पुराना समय भी देखा है, नया भी। इस हिसाब से वे समयसिद्ध हैं। स्वयंसिद्ध इनकी एक और विशेषता है। इन्हें बनाने के लिए किसी भी तरह की सामग्री कहीं और से नहीं लानी पड़ती। मरुभूमि में पानी का काम करने वाले विशाल संगठन का एक बड़ा गुण है–अपनी ही जगह उपलब्ध चीजों से अपना मजबूत ढांचा खड़ा करना। किसी जगह कोई एक सामग्री मिलती है, पर किसी और जगह पर वह है नहीं-पर कुंडी वहां भी बनेगी।

जहां पत्थर की पट्टियां निकलती हैं, वहां कुंडी का मुख्य भाग उसी से बनता है। कुछ जगह यह नहीं है। पर वहां फोग नाम का पेड़ खड़ा है साथ देने। फोग की टहनियों को एक दूसरे में गूंथ कर, फंसा कर कुंडी के ऊपर का गुंबदनुमा ढांचा बनाया जाता है। इस पर रेत, मिट्टी और चूने का मोटा लेप लगाया जाता है। गुंबद के ऊपर चढ़ने के लिए भीतर गुंथी लकड़ियों का कुछ भाग बाहर निकाल कर रखा जाता है। बीच में पानी निकालने की जगह। यहां भी वर्षा का पानी कुंडी के मंडल में बने ओयरो, छेद से जाता है। पत्थर वाली कुंडी में ओयरो की संख्या एक से अधिक रहती है, लेकिन फोग की कुंडियों में सिर्फ एक ही रखी जाती है। कुंडी का व्यास कोई सात-आठ हाथ, ऊंचाई कोई चार हाथ और पानी जाने वाला छेद प्रायः एक बित्ता बड़ा होता है। वर्षा का पानी भीतर कुंडी में जमा करने के बाद बाकी दिनों इस छेद को कपड़ों को लपेट कर बनाए गए एक डाट से ढंक कर रखते हैं। फोग वाली कुंडियां अलग-अलग आगोर के बदले एक ही बड़े आगोर में बनती हैं, कुंइयों की तरह। आगोर के साथ ही साफ लिपे-पुते सुंदर घर और वैसी ही लिपी-पुती कुंडियां चारों तरफ फैली विशाल मरुभूमि में लुकाछिपी का खेल खेलती लगती हैं।

राजस्थान में रंगों के प्रति एक विशेष आकर्षण है। लहंगे, ओढ़नी और चटकीले रंगों की पगड़ियां जीवन के सुख और दुख में रंग बदलती हैं। पर इन कुंडियों का केवल एक ही रंग मिलता है-केवल सफेद। तेज धूप और गरमी के इस इलाके में यदि कुंडियों पर कोई गहरा रंग हो तो वह बाहर की गरमी सोख कर भीतर के पानी पर भी अपना