पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/४६

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बंध-बंधा, ताल-तलाई, जोहड़-जोहड़ी, नाडी, तालाब, सरवर, सर, झील, देईबंध जगह, डहरी, खडीन और भे - इन सबको बिंदु से भर कर सिंधु समान बनाया गया। आज के नए समाज ने जिस क्षेत्र को पानी के मामले में एक असंभव क्षेत्र माना है, वहां पुराने समाज ने कहां क्या-क्या संभव है - इस भावना से काम किया। साईं 'इतना' दीजिए के बदले साईं जितना दीजिए वामे कुटुम समा कर दिखाया।

माटी और आकाश के बदलते रूपों के साथ ही यहां तालाबों के आकार, प्रकार और उनके नाम भी बदल जाते हैं। चारों तरफ मजबूत पहाड़ हों, पानी खूब गिरता हो तो उसे वर्ष भर नहीं, वर्षों तक रोक सकने वाली झीलों का, बड़े-बड़े तालाबों का निर्माण हुआ। ये बड़े काम केवल राज-परिवारों ने ही किए हों, ऐसा नहीं था। कई झील और बड़े-बड़े तालाब भीलों ने, बंजारों ने, चरवाहों ने भी वर्षों की मेहनत से तैयार किए थे।

अच्छी पगार पाने वाले बहुत से इतिहासकारों ने इस तरह के बड़े कामों को बेगारप्रथा से जोड़कर देखा है। पर अपवादों को नियम नहीं मान सकते हैं। इनमें से कुछ काम किसी अकाल के दौरान लोगों को थामने, अनाज पहुंचाने और साथ ही बाद में आ सकने वाले किसी और अकाल से निपट सकने की ताकत जुटाने के लिए किए गए थे तो कुछ अच्छे दौर में और अच्छे भविष्य के लिए पूरे हुए थे।

पानी की आवक पूरी नहीं हो, रोक लेने के लिए जगह भी छोटी हो तो उस जगह को छोड़ नहीं देना है - उस पर तालाब के बड़े कुटुंब की सबसे छोटी सदस्या-नाडी बनी मिलेगी। रेत की छोटी पहाड़ी, थली या छोटे से मगरे के आगोर से बहुत ही थोड़ी मात्रा में बहने वाले पानी का पूरा सम्मान करती है नाडी। उसे बह कर बर्बाद नहीं होने देती है नाडी। साधन, सामग्री कच्ची यानी मिट्टी की ही होती है, पर इसका यह अर्थ नहीं कि नाडी का स्वभाव भी कच्चा ही होगा। यहां दो-सौ, चार-सौ साल पुरानी नाडियां भी खड़ी मिल जाएंगी। नाड़ियों में पानी महीने-डेढ़ महीने से सात-आठ महीने तक भी रुका रहता है। छोटे से छोटे गांव में एक से अधिक नाडियां मिलती हैं। मरुभूमि में बसे गांवों में इनकी संख्या हर गांव में दस-बारह भी हो सकती है। जैसलमेर में पालीवालों के ऐतिहासिक चौरासी गांवों में सात सौ से अधिक नाडियां या उनके चिन्ह आज भी देखे जा सकते हैं।

तलाई या जोहड़-जोहड़ी में पानी नाडी से कुछ ज्यादा देरी तक और कुछ अधिक मात्रा में जमा किया जाता है। इनकी पाल पर पत्थर का काम, छोटा-सा घाट, पानी में उतरने के लिए पांच-सात छोटी सीढ़ियों से लेकर महलनुमा छोटी-सी इमारत भी खड़ी मिल सकती है।