पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/४७

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तलाई वहां भी हैं, जहां और कुछ नहीं हो सकता। राजस्थान में नमक की झीलों के आसपास फैले लंबे-चौड़े भाग में पूरी जमीन खारी है। यहां वर्षा की बूंदें धरती पर पड़ते ही खारी हो जाती हैं। भूजल, पाताल पानी खारा, ऊपर बहने वाला पालर पानी खारा और इन दो के बीच अटका रेजाणी पानी भी खारा। यहां नए नलकूप लगे, हैंडपंप लगे - सभी ने खारा पानी उलीचा। लेकिन ऐसे हिस्सों में भी चार सौ-पांच सौ साल पुरानी तलाइयां कुछ इस ढंग से बनी मिलेंगी कि वर्षा की बूंदों को खारी धरती से दो चार हाथ ऊपर उठे आगीर में समेट कर वर्ष-भर मीठा पानी देती हैं।

ऐसी अधिकांश तलाइयां कोई चार सौ साल पुरानी हैं। यह वह दौर था जब नमक का सारा काम बंजारों के हाथ में था। बंजारे हजारों बैलों का कारवां लेकर नमक का कारोबार करने इस कोने से उस कोने तक जाते थे। ये रास्ते में पड़ने वाले गांवों के बाहरी हिस्सों में पड़ाव डालते थे। उन्हें अपने पशुओं के लिए भी पानी चाहिए था। बंजारे नमक का स्वभाव जानते थे कि वह पानी में घुल जाता है। वे पानी का भी स्वभाव जानते थे कि वह नमक को अपने में मिला लेता है - लेकिन उन्होंने इन दोनों के इस घुल-मिल कर रहने वाले स्वभावों को किस चतुराई से अलग-अलग रखा - यह बताती हैं सांभर झील के लंबे-चौड़े खारे आगोर में जरा-सी ऊपर उठ कर बनाई गई तलाइयां।

बीसवीं सदी की सब तरह की सरकारें और इक्कीसवीं सदी में ले जाने वाली सरकार भी ऐसे खारे क्षेत्रों के गांवों के लिए मीठा पानी नहीं जुटा पाई। पर बंजारों ने तो इस इलाके का नमक खाया था - उन्हीं ने इन गांवों को मीठा पानी पिलाया है। कुछ बरस पहले नई-पुरानी सरकारों ने इन बंजारों की तलाइयों के आसपास ठीक वैसी ही नई तलाई बनाने की कोशिश की पर नमक और पानी के "घुल-मिल" स्वभाव को वे अलग नहीं कर पाई।

पानी आने और उसे रोक लेने की जगह और ज्यादा मिल जाए तो फिर तलाई से आगे बढ़ कर तालाब बनते रहे हैं। इनमें वर्षा का पानी अगली वर्षा तक बना रहता है। नई भागदौड़ के कारण पुराने कुछ तालाब नष्ट जरूर हुए हैं पर आज भी वर्ष-भर भरे रहने वाले तालाबों की यहां कमी नहीं है। इसीलिए जनगणना करने वालों को भरोसा तक नहीं होता कि मरुभूमि के गांवों में इतने सारे तालाब कहां से आ गए हैं। सरकारें अपनी ऐसी रिपोर्ट में यह बतलाने से कतराती हैं कि इन्हें किनने बनाया है। यह सारा प्रबंध समाज ने अपने दम पर किया था और इसकी मजबूती इतनी कि उपेक्षा के इस लंबे दौर के बाद भी यह किसी न किसी रूप में आज भी टिका है और समाज को भी टिकाए हुए है ।

गजेटियर में जैसलमेर का वर्णन तो बहुत डरावना है : "यहां एक भी बारामासी