पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/४९

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गांवों में से केवल १.७५ प्रतिशत गांवों में बिजली है। इसे हिसाब की सुविधा के लिए २ प्रतिशत कर लें तब भी ग्यारह गांव बैठेंगे। यह आंकड़ा पिछली जनगणना रिपोर्ट का है। मान लें कि इस बीच में और भी विकास हुआ है तो पहले के 11 गांवों में 20-30 गांव और जोड़ लें। 515 में से बिजली वाले गांवों की संख्या तब भी नगण्य ही होगी। इसका एक अर्थ यह भी है कि बहुत-सी जगह ट्यूबवैल बिजली से नहीं, डीजल तेल से चलते हैं। तेल बाहर दूर से आता है। तेल का टैंकर न आ पाए तो पंप नहीं चलेंगे, पानी नहीं मिलेगा। सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो भी आगे-पीछे ट्यूबवैल से जलस्तर घटेगा ही। उसे जहाँ के तहाँ थामने का कोई तरीका अभी ती है नहीं। वैसे कहा जाता है कि जैसलमेर के नीचे भूजल का अच्छा भंडार है। पर जल की इस गुल्लक में बिना कुछ डाले सिर्फ़ निकालते रहने की प्रवृत्ति कभी तो धोखा देगी ही।

एक बार फिर दुहरा लें कि मरुभूमि के सबसे विकट माने गए इस क्षेत्र में 99.78 प्रतिशत गांवों में पानी का प्रबंध है और अपने दम पर है। इसी के साथ उन सुविधाओं की तुलना करें जिन्हें जुटाना नए समाज की नई संस्थाओं, मुख्यतः सरकार की जिम्मेदारी मानी जाती है। पक्की सड़कों से अभी तक केवल 19 प्रतिशत गांव जुड़ पाए हैं, डाक आदि की सुविधा 30 प्रतिशत तक फैल पाई है। चिकित्सा आदि की देखरेख 9 प्रतिशत तक पहुंच सकी है। शिक्षा सुविधा इन सबकी तुलना में थोड़ी बेहतर है-50 प्रतिशत गांवों में। यहाँ इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि डाक, चिकित्सा, शिक्षा या बिजली की सुविधाएँ जुटाने के लिए सिर्फ़ एक निश्चित मात्रा में पैसा चाहिए। राज्य के कोष में उसका प्रावधान रखा जा सकता है, ज़रूरत पड़ने पर किसी और मद से या अनुदान के सहारे उसे बढ़ाया जा सकता है। फिर भी हम पाते हैं कि ये सेवाएँ यहाँ प्रतीक रूप में ही चल पा रही हैं।

लेकिन पानी का काम ऐसा नहीं है। प्रकृति से इस क्षेत्र को मिलने वाले पानी को समाज बढ़ा नहीं सकता। उसका 'बजट' स्थिर है। बस उसी मात्रा से पूरा काम करना है। इसके बाद भी समाज ने इसे कर दिखाया है। 515 गांवों में नाडियों, तलाइयों की गिनती छोड़ दें, बड़े तालाबों की संख्या 294 है।

जिसे नए लोगों ने निराशा का क्षेत्र माना, वहाँ सीमा के छोर पर, पाकिस्तान से थोड़ा पहले आसूताल यानी आस का ताल है। जहाँ तापमान 50 अंश छू लेता है, वहाँ

४८ सितलाई यानी शीतल तलाई है और जहां बादल सबसे ज्यादा 'धोखा' देते हैं, वहां बदरासर
राजस्थान की भी है।
रजत बूंदें पानी का सावधानी से संग्रह और फिर पूरी किफायत से उसका उपयोग-इस