पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/५५

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भाग के पानी को समेट कर उसे तालाब की तरफ मोड़ कर लाने के लिए कोई आठ किलोमीटर लंबी आड़, यानी एक तरह की मेड़बंदी की गई थी। फिर इतनी मात्रा में चले आ रहे पानी की ताकत को तोला गया था और इसकी टक्कर की मार को कम करने के लिए पत्थर की चादर यानी एक और लंबी मजबूत दीवार बनाई गई थी। पानी इस पर टकरा कर अपना सारा वेग तोड़ कर बड़े धीरज के साथ घड़सीसर में प्रवेश करता है। यह चादर न होती तो घड़सीसर का आगर, उसके सुंदर घाट - सब कुछ उखड़ सकता है।

फिर इस तरह लबालब भरे घड़सीसर की रखवाली नेष्टा के हाथ आ जाती हैं। नेष्टा यानी तालाब का वह अंग जहां से उसका अतिरिक्त पानी तालाब की पाल को नुकसान पहुचाए बिना बाहर बहने लगता है। नेष्ठा चलता है और इतने विशाल तालाब को तोड़ सकने वाले अतिरिक्त पानी को बाहर बहाने लगता है। लेकिन यह 'बहाना’ भी बहुत विचित्र था। जो लोग एक-एक बूंद एकत्र कर घड़सीसर भरना जानते थे, वे उसके अतिरिक्त पानी को भी केवल पानी नहीं, जलराशि मानते थे। नेष्टा से निकला पानी आगे एक और तालाब में जमा कर लिया जाता था। नेष्टा तब भी नहीं रुकता तो इस तालाब का नेष्टा भी चलने लगता। फिर उससे भी एक और तालाब भर जाता। यह सिलसिला - आसानी से भरोसा नहीं होगा - पूरे नौ तालाबों तक चलता रहता। नौताल, गोविंदसर, जोशीसर, गुलाबसर, भाटियासर, सूदासर, मोहतासर, रतनसर और फिर किसनघाट। यहां तक पहुंचने पर भी पानी बचता तो किसनघाट के बाद उसे कई बेरियों में, यानी छोटे-छोटे कुएंजुमा कुंडों में भर कर रख दिया जाता। पानी की एक-एक बूंद जैसे शब्द और वाक्य घड़सीसर से किसनघाट तक के ६.५ मील लंबे क्षेत्र में अपना ठीक अर्थ पाते थे।

लेकिन आज जिनके हाथ में जैसलमेर है, राज है, वे घड़सीसर का अर्थ ही भूल चले हैं तो उसके नेष्टा से जुड़े नौ तालाबों की याद उन्हें भला कैसे रहेगी। घड़सीसर के आगोर में वायुसेना का हवाई अड्डा बन गया है। इसलिए आगोर के इस हिस्से का पानी अब तालाब की और न आकर कहीं और बह जाता है। नेष्टा और उसके रास्ते में पड़ने वाले नौ तालाबों के आसपास बेतरतीब बढ़ते शहर के मकान, नई गृह निर्माण समीतियां और तो और पानी का ही नया काम करने वाला इंदिरा नहर प्राधिकरण का दफ्तर, उसमें काम करने वालों की कालोनी बन गई हैं। घाट, पठसाल (पाठशालाएं), रसोई, बारादरी, मंदिर ठीक सार-संभाल के अभाव में धीरे-धीरे टूट चले हैं। आज शहर ल्हास का वह खेल भी नहीं खेलता, जिसमें राजा-प्रजा सब मिलकर घड़सीसर की सफाई करते थे, साद निकालते थे। तालाब के किनारे स्थापित पत्थर का जलस्तंभ भी थोड़ा-सा हिलकर एक