पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/६०

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लगी। अब रोज सुबह गांवों से बच्चे और दूसरे लोग भी मेधा के साथ आने लगे। सब मिलकर काम करते। १२ साल हो गए थे, अब भी विशाल तालाब पर काम चल रहा था। लेकिन मेघा की उमर पूरी हो गई। पत्नी सती नहीं हुई। अब तालाब पर मेघा के बदले वह काम करने आती। ६ महीने में तालाब पूरा हुआ। बाफ यानी भाप के कारण बनना शुरू हुआ था इसलिए इस जगह का नाम भी बाफ पड़ा जो बाद में बिगड़ कर बाप हो गया। चरवाहे मेघा को समाज ने मेघोजी की तरह याद रखा और तालाब की पाल पर ही उनकी सुंदर छतरी और उनकी पत्नी की स्मृति में वहीं एक देवली बनाई गई।

बाप बीकानेर-जैसलमेर के रास्ते में पड़ने वाला छोटा-सा कस्बा है। चाय और कचौरी की ५-७ दुकानों वाला बस अड्डा है। बसों से तिगुनी ऊंची पाल अड्डे के बगल में खड़ी हैं। गर्मी मे पाल के इस तरफ लू चलती हैं, उस तरफ मेघोजी के तालाब में लहरें उठती हैं। बरसात के दिनों में तो तालाब में लाखेटा (द्वीप) 'लग' जाता है। तब पानी ४ मील