पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/६३

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되 राजस्थान की रजत बूंदें ऐसे सब स्थानों पर खडीन बनाई गई। खडीन एक तरह का अस्थाई तालाब है। दो तरफ मिट्टी की पाल उठा कर तीसरी तरफ पत्थर की मजबूत चादर लगाई जाती है। खडीन की पाल धोरा कहलाती है। धोरे की लंबाई पानी की आवक के हिसाब से कम ज्यादा होती है। कई खडीन पांच सात किलोमीटर तक चलती हैं। वर्षा के दिनों में चलती नदी खडीन में बांध ली जाती है। पानी और बहे तो चादर से बाहर निकल कर उसी प्रवाहपथ पर बनी दूसरी-तीसरी खडीनों को भी भरता चलता है। खडीन में आराम करती हुई यह नदी धीरे-धीरे सूखती जाती है पर इस तरह वह खडीन की भूमि को नम बनाती जाती है। इस नमी के बल पर खडीनों में गेहूं आदि की फसल बोई जाती है। मरुभूमि में जितनी वर्षा होती है उस हिसाब से यहां गेहूं की फसल लेना संभव ही नहीं था। पर यहां कई जगहों पर, विशेषकर जैसलमेर में सैकड़ों वर्षों पहले इतनी खडीन बनाई गई थीं कि इस जिले के एक क्षेत्र का पुराना नाम खडीन ही पड़ गया था।

खडीनों को बनाने का श्रेय पालीवाल ब्राह्मणों को जाता है। कभी पाली की तरफ से यहां आकर बसे पालीवालों ने जैसलमेर के राज को अनाज से भर दिया था। इस भाग में इनके चौरासी गांव बसे थे। गांव भी एक से एक सुंदर और हर तरह से व्यवस्थित ।