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राजस्थान की रजत बूंदें

कुलधरा, जैसलमेर

छोटा डबरा-सा बन जाता है। नदी बाद में सूख जाती है पर इस जगह कुछ समय तक पानी बना रहता है। यह जगह भे कहलाती है। भे का उपयोग बाद में रेजाणी पानी पाने के लिए किया जाता है।

खेतों में भी कुछ निचले भागों में कहीं-कहीं पानी ठहर जाता है। इन्हें डहरी, डहर या डैर कहते हैं। इहरियों की संख्या भी सैकड़ों में जाती है। इन सब जगहों पर पालर पानी रोका जाता है, फिर उसे रेजाणी में बदलने का अवसर मिलता है। इसकी मात्रा कम है या ज्यादा-ऐसा रत्ती भर नहीं सोचा जाता। रजत तोला हो या रत्ती, वह तो तुलता ही है। रजत बूंदें चार हाथ की डहरी में आने लायक हों या चार कोस की खडीन में, उनका तो संग्रह होता ही है। कुंई, पार, कुंड, टांकें, नाडी, तलाई, तालाब, सरवर, बेरे, खडीन, दईबंध जगह, डेहरी और भे इन रजत बूंदों से भरते हैं, कुछ समय के लिए सूखते भी हैं पर मरते नहीं।

ये सब आंख के तप से लिखे जल और अन्न के अमरपटो, अमर लेख हैं ।