पृष्ठ:Rajasthan Ki Rajat Boondein (Hindi).pdf/६९

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सिद्धहस्त कीणियां वहाँ खुदाई प्रारंभ करते हैं। कीणियां कोई अलग जात नहीं, किसी भी जाति में इस काम में निपुण लोग कीणियाँ बन जाते हैं। पर मेघवाल, ओड और भील परिवारों में कीणियां सहज ही निखर आते हैं।

कुएँ का व्यास तय होता है भीतर बह रहे जल की मात्रा से। जल खूब मात्रा में मिलने का अनुमान है तो व्यास बड़ा होगा। तब पानी निकालने के लिए एक नहीं दो या चार चड़स भी लग सकती हैं और वे नीचे से ऊपर आते हुए आपस में टकराएंगी नहीं।

राजस्थान के उन क्षेत्रों में जहाँ भूजल बहुत गहरा नहीं है, वहाँ पूरी खुदाई हो जाने पर, स्रोत मिल जाने पर नीचे से चिनाई की जाती है। यह साधारण पत्थर और ईट से होती है। ऐसी चिनाई सीध यानी सीधी कहलाती है। पर जहाँ भूजल बहुत गहरा है वहाँ लगातार खुदाई करते गए तो मिट्टी धंसने का खतरा रहता है। ऐसे भागों में कुओं में ऊपर से नीचे की ओर चिनाई की जाती है - थोड़ा खोदा, उतना चिन दिया और फिर आगे बढ़े। ऐसी उल्टी चिनाई ऊंध कहलाती है। लेकिन जहां पानी और भी गहरा हो वहाँ साधारण पत्थर की चिनाई, चाहे वह सीध हो या ऊंध, मजबूती नहीं दे सकती। ऐसे स्थानों में हरेक पत्थर को सचमुच तराशा जाता है, हरेक टुकड़ा अपने पास वाले टुकड़े में गुटकों और फांस के सहारे फंस जाता है। गुटका-फांस दाएँ-बाएँ भी रहती है और ऊपर-नीचे भी। इसे सूखी चिनाई कहते हैं। इस तरह तराशे गए पत्थर के टुकड़ों से चिनाई का एक-एक घेरा धीरे-धीरे पूरा होता है और फिर नीचे की खुदाई शुरू हो जाती है।

कहीं-कहीं बहुत गहराई के साथ मिट्टी का स्वभाव कुछ ऐसा रहता है कि ये तीनों तरीके-सीध, ऊंध और सूखी चिनाई से भी काम नहीं चलता। तब पूरे कुएँ में थोड़ी-सी खुदाई और चिनाई गोलाकार में की जाती है। पर अच्छी गहराई आने पर पूरी खुदाई रोककर फांक खुदाई की जाती है। वृत्त की एक चौथाई फांक खोद कर उतने हिस्से की चिनाई कर, उस चौथाई भाग को मजबूती दे दी जाती है। तब उसके सामने का दूसरा