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राजस्थान की रजत बूंदें

राजस्थान के मन में समुद्र के और भी कई नाम हैं। संस्कृत से विरासत में मिले सिंधु, सरितापति, सागर, वाराधिप तो हैं ही, आच, उअह, देधाण, वडनीर, बारहर, सफरा-भडार जैसे संबोधन भी हैं। एक नाम हेल भी है और इसका अर्थ समुद्र के साथ-साथ विशालता और उदारता भी है।

यह राजस्थान के मन की उदारता ही है कि विशाल मरुभूमि में रहते हुए भी उसके कंठ में समुद्र के इतने नाम मिलते हैं। इसकी दृष्टि भी रही होगी। सृष्टि की जिस घटना को घटे हुए ही लाखों बरस हो चुके, जिसे घटने में भी हजारों बरस लगे, उस सबका जमा घटा करने कोई बैठे तो आकड़ों के अनंत विस्तार के अंधेरे में खो जाने के सिवा और क्या हाथ लगेगा। खगोलशास्त्री लाखों, करोड़ों मील की दूरियों को 'प्रकाश वर्ष' से नापते हैं। लेकिन राजस्थान के मन ने तो युगों के भारी भरकम गुना-भाग को पलक झपक कर निपटा दिया-इस बड़ी घटना को वह 'पलक दरियाव' की तरह याद रखे है-पलक झपकते ही दरिया का सूख जाना भी इसमें शामिल है और भविष्य में इस सूखे स्थल का क्षण भर में फिर से दरिया बन जाना भी।