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राजस्थान की रजत बूंदें

में थोड़ा बहुत जो पानी जगत पर गिर जाए, उसको भी समेट कर पशुओं के लिए सुरक्षित करने का प्रबंध-सब कुछ करते-करते इन कुओं पर इतना कुछ बन जाता कि वे कुएं न रह कर कभी-कभी तो छोटे-छोटे भवन, विद्यालय और कभी तो महल जैसे लगने लगते।

पानी पाताल से उठा कर लाना हो तो कई चीजों की सहायता चाहिए। इस विशाल प्रबंध का छोटे से छोटा अंग महत्वपूर्ण है, उसके बिना बड़े अंग भी काम नहीं देंगे—हर चीज काम की है इसलिए नाम की भी है।

सबसे पहले तो भूजल के नाम देखें। पाताल पानी तो एक नाम है ही, फिर सेवो, सेजो, सोता, वाकल पानी, वालियो, भुंईजल भी है। तलसीर और केवल सीर भी है। भूजल के अलावा सीर के दो और अर्थ हैं। एक अर्थ है मीठा और दूसरा है कमाई का नित्य साधन। एक तरह से ये दोनों अर्थ भी कुएं के जल के साथ जुड़ जाते हैं। नित्य साधन कमाई की तरह कुआं भी नित्य जल देता है पर तेवड़ यानी किफायत, मितव्ययिता या ठीक प्रबंध के बिना यह कमाई पुसाती नहीं है।

फिर इस भवकूप में संसार रूपी कुएं में कई तरह के कुएं हैं। द्रह, दहड और दैड कच्चे, बिना बंधे कुएं के नाम हैं। ब और व के अंतर से बेरा, वेरा, बेरी, वेरी हैं। कूंडो, कूप और एक नाम पाहुर भी है। कहते हैं किसी पाहुर वंश ने एक समय इतने कुएं बनवाए थे कि उस हिस्से में बहुत लंबे समय तक कुएं का एक नाम पाहुर ही पड़ गया था। कोसीटो या कोइटो थोड़ा कम गहरा कुआं है तो कोहर नाम है ज्यादा गहरे कुएं का। बहुत से क्षेत्रों में भूजल खूब गहरा है इसलिए गहरे कुओं के नाम भी खूब हैं जैसेः पाखातल, भंवर कुआं, भमलियो, पाताल कुआं और खारी कुआं। वैरागर चौड़े कुएं का नाम है, तो चौतीना उस कुएं का जिस पर चार चड़सों द्वारा चारों दिशाओं से एक साथ पानी निकाला जाता है। चौतीना का एक नाम चौकरणो भी रहा है। फिर बावड़ी, पगबाव या झालरा हैं सीढ़ीदार ऐसे कुएं, जिनमें पानी तक सहज ही उतरा जा सकता है। और केवल पशुओं को पानी पिलाने के लिए बने कुओं का नाम पीचको या पेजको है।

गहरे कुओं में बड़े डोल या चड़स का उपयोग होता है। एक साधारण घड़े में कोई २० लीटर पानी आता है। डोल दो-तीन-घड़े बराबर पानी लाता है। चड़स, कोस या मोट सात घड़े की होती है। इसका एक नाम पुर और गांजर भी है। इन सबमें खूब मात्रा में पानी भरता है और इसलिए इस वजनी काम को करने, इसे दो-तीन सौ हाथ ऊपर खींचने और फिर खाली करने में कई तरह के साधन और उतनी ही तरह की सावधानी की जरूरत रहती है। चड़स खिंचती है बैलजोड़ी या एक ऊंट से। उन्हें भी इतना भार खींच कर ऊपर