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राजस्थान की रजत बूंदें

पधारो म्हारे देस

कभी मरुभूमि में लहराते रहे हाकड़ो के सूख जाने की घटना को राजस्थान का मन 'पलक दरियाव' की तरह लेता है। यह समय या काल के बोध की व्यापकता को याद किए बिना समझ नहीं आ सकेगा। इस काल दर्शन में मनुष्य के ३६५ दिनों का एक दिव्य दिन माना गया है। ऐसे ३०० दिव्य दिनों का एक दिव्य वर्ष। ४,८०० दिव्य वर्षों का सतयुग, ३,६०० दिव्य वर्षों का त्रेता युग, २,४०० दिव्य वर्षों का द्वापर युग और १,२०० दिव्य वर्षों का कलियुग माना गया है। इस हिसाब को हमारे वर्षों में बदलें तो १७,२८,००० वर्ष का सतयुग, १२,९६,००० का त्रेता युग, ८,६४,००० का द्वापर युग और कलियुग ४,३२,००० वर्ष का माना गया है। श्रीकृष्ण का समय द्वापर रहा है। जब वे हाकड़ो के क्षेत्र में आए हैं तब यहां मरुभूमि निकल आई थी। यानी पलक दरियाव की घटना उससे भी घट चुकी थी।

एक कथा इस घटना को त्रेता युग तक ले जाती है। प्रसंग है श्रीराम का लंका पर चढ़ाई करने का। बीच में है समुद्र जो रास्ता नहीं दे रहा। तीन दिन तक श्रीराम उपवास करते हैं, पूजा करते हैं। पर अनुनय-विनय के बाद भी जब रास्ता मिलता नहीं तो श्रीराम समुद्र को सुखा देने के लिए बाण चढ़ा लेते हैं। समुद्र देवता प्रकट होते हैं, क्षमा मांगते हैं। पर बाण तो डोरी पर चढ़ चुका था, अब उसका क्या किया जाए। कहते हैं समुद्र के ही सुझाव पर वह बाण उस तरफ छोड़ दिया गया जहां हाकड़ो था। इस तरह त्रेता युग में सूखा था हाकड़ो।

समुद्र के किनारे की भूमि को फारसी में शीख कहते हैं। आज की मरुभूमि का एक भाग शेखावटी है। कहा जाता है कि कभी यहां तक समुद्र था। हकीम युसूफ झुंझुनवीजी की पुस्तक झुंझुनूं का इतिहास में इसका विस्तार से विवरण है। जैसलमेर री ख्यात में भी हाकड़ो शब्द आया है। देवीसिंह मंडावा की पुस्तक शार्दूलसिंह शेखावत, श्री परमेश्वर सोलंकी की पुस्तक मरुप्रदेश का इतिवृत्तात्मक विवेचन (पहला खंड) भी यहां समुद्र की स्थिति पर काफी जानकारी देती है। फिर कुछ प्रमाण हैं इस क्षेत्र में मिलने वाले जीवाश्म के और फिर हैं लोकमन में तैरने वाले समुद्र के नाम और उससे जुड़ी कथाएं।

पुरानी डिंगल भाषा के विभिन्न पर्यायवाची कोषों में समद्र के नाम लहरों की तरह ही उठते हैं। अध्याय में जो ग्यारह नाम दिए गए हैं, उनमें पाठक चाहें तो इन्हें और जोड़ सकते हैं:

समुद्रां कूपार अंबधि सरितांपति (अख्यं)
पारावारां परठि उदधि (फिर) जळनिधि (दख्यं)।
सिंधू सागर (नांम) जादपति जळपति (जप्पं),
रतनाकर (फिर रटहू) खीरदधि लवण (सुपप्पं)।
(जिण धांम नामं जंजाळ जे सटमिट जाय संसार रा,
तिण पर पाजा बंधियां अ तिण नामां तार रा)॥