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संस्थान, चौपासनी, जोधपुर से प्रकाशित और श्री नारायण सिंह भाटी द्वारा संपादित डिंगल कोष (१९५७) से प्राप्त हुए हैं।

राज्य की वर्षा के आंकड़े राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर से प्रकाशित श्री इरफान मेहर की पुस्तक राजस्थान का भूगोल से लिए गए हैं। राजस्थान की जिलेवार जल कुंडली इस प्रकार है :

जिला औसत वर्षा सेंटीमीटर में
जैसलमेर १६.४०
श्रीगंगानगर २५.३७
बीकानेर २६.३७
बाड़मेर २७.७५
जोधपुर ३१.८७
चुरू ३२.५५
नागौर ३८.८६
जालौर ४२.१६
झुंझुनूं ४४.४५
सीकर ४६.६१
पाली ४९.०४
अजमेर ५२.७३
जयपुर ५४.८२
चित्तौड़गढ़ ५८.२१
अलवर ६१.१६
टौंक ६१.३६
उदयपुर ६२.४५
सिरोही ६३.८४
भरतपुर ६७.१५
धौलपुर ६८.००
सवाई माधोपुर ६८.९२
भीलवाड़ा ६९.९०
डूंगरपुर ७६.१७
बूंदी ७६.४१
कोटि ८८.५६

बांसवाड़ा ९२.२४
झालावाड़ १०४.४७

नये बने जिलों के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं।

बरस भर में केवल १६.४० सेंटीमीटर वर्षा पाने वाला जैसलमेर सैकड़ों वर्षों तक ईरान, अफगानिस्तान से लेकर रूस तक के कई भागों से होने वाले व्यापार का केंद्र बना रहा है। उस दौरान जैसलमेर का नाम दुनिया के नक्शे पर कितना चमकता था, इसकी एक झलक जैसलमेर खादी ग्रामोदय परिषद के भंडार की एक दीवार पर बने नक्शे में आज भी देखने मिल सकता है। तब बंबई, कलकत्ता, मद्रास का नाम निशान भी नहीं था कहीं।

मरुनायक श्रीकृष्ण की मरुयात्रा और वरदान का प्रसंग हमें सबसे पहले श्री नारायणलाल शर्मा की पुस्तिका में देखने मिला।

थार प्रदेश के पुराने नामों में मरुमेदनी, मरुधन्व, मरुकांतार, मरुधर, मरुमंडल और मारव जैसे नाम अमर कोष, महाभारत, प्रबंध चिंतामणि, हितोपदेश, नीति शतक, वाल्मीकि रामायण आदि संस्कृत ग्रंथों में मिलते है और इनका अर्थ रेगिस्तान से ज्यादा एक निर्मल प्रदेश रहा है।

माटी, जल और ताप की तपस्या

मेंढक और बदल का प्रसंग सब जगह मिलता है। पर यहां डेडरिया, मेंढक बादलों को देखकर सिर्फ डर्र-डर्र नहीं करता, वह पालर पानी को भर लेने की वही इच्छा मन में रखता है, जो इच्छा हमें पूरे राजस्थानी समाज के मन में दिखती है। और फिर यह साधारण-सा दिखने, लगने वाला मेंढक भी कितना पानी भर लेना चाहता है? इतना की आधी रात तक तालाब का नेष्टा, यानि अपरा चल जाए,

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राजस्थान की रजत बूंदें