अनुसार किसी भी मंत्रका जप किया जा सकता है। मुझे लड़कपनसे रामनाम सिखाया गया। मुझे अुसका सहारा बराबर मिलता रहता है। जिससे मैने अुसे सुझाया है। जो मत्र हम जपें, अुसमे हमे तल्लीन हो जाना चाहिये। मत्र जपते समय दूसरे विचार आवे तो परवाह नही। फिर भी यदि श्रद्धा रखकर हम मत्रका जप करते रहेगे, तो अतमे सफलता अवश्य प्राप्त करेगे। मुझे जिसमे रत्तीभर शक नही। यह मत्र हमारी जीवन-डोर होगा और हमे तमाम सकटोसे बचावेगा।[१]अैसे पवित्र मंत्रका अुपयोग किसीको आर्थिक लाभके लिअे हरगिज न करना चाहिये। अिस मंत्रका चमत्कार है हमारी नीतिको सुरक्षित रखनेमे। और यह अनुभव प्रत्येक साधकको थोड़े ही समयमे मिल जायगा। हां, अितना याद रखना चाहिये कि तोतेकी तरह अिस मंत्रको न पढ़े। अिसमे अपनी आत्मा पूरी तरह लगा देनी चाहिये। तोते यत्रकी तरह अैसे मंत्र पढ़ते है। हमे अुन्हे ज्ञानपूर्वक पढ़ना चाहिये––अवांछनीय विचारोंको मनसे निकालनेकी भावना रखकर और मंत्रकी अैसा करनेकी शक्तिमे विश्वास रखकर।
हिन्दी नवजीवन, २५-५-१९२४
- ↑ अेक ब्रह्मचारीको ब्रह्मचर्य सिद्ध करनेके अुपाय सुझाते हुअे गांधीजीने लिखा था
"आखिरी अुपाय प्रार्थनाका है। ब्रह्मचर्य साधनेकी अिच्छा रखनेवाला हर रोज नियमसे, सच्चे हृदयसे रामनाम जपे और अीश्वरकी कृपा चाहे।"––यंग अिण्डिया, २९-४-'२६
अेक प्रयत्नशील साधकको गांधीजीने लिखा था
"रामकी मदद लेकर हमे विकारोके रावणका वध करना है, और वह सम्भवनीय है। जो राम पर भरोसा रख सको तो तुम श्रद्धा रखकर निश्चितताके साथ रहना। सबसे बड़ी बात यह है कि आत्म-विश्वास कभी मत खोना। खानेका खूब माप रखना, ज्यादा और ज्यादा तरहका भोजन न करना।"––हिन्दी नवजीवन, २०-१२-'२८
"जब तुम्हारे विकार तुम पर हावी होना चाहे, तब तुम घुटनोके बल झुककर भगवानसे मददकी प्रार्थना करो। रामनाम अचूक रूपसे मेरी मदद करता है। बाहरी मददके रूपमें कटि-स्नान करो।"––'अनीतिकी राहपर' के दूसरे सस्करणकी भूमिका (१९२८) से।