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नाम रटनेसे शान्ति

"अेक ही चीजका जो यह बार-बार पाठ होता है, वह मेरे कानको कुछ रुचता नही। सम्भव है कि यह मेरे बुद्धिवादी गणिती स्वभावका दोष हो। पर वही श्लोक नित्य बार-बार गाये जाये, यह मुझे अच्छा नही लगता। अुदाहरणके लिअे 'बाक' के अलौकिक सगीतमे भी जब वही अेक पद ('हे पिता, अुन्हे क्षमा कर दे। वे नही जानते कि वे क्या करते है।') बार-बार गाया जाता है, तब मेरे मन पर अुसका कोअी प्रभाव नहीं पड़ता।"

गाधीजीने मुसकराते हुअे कहा "पर आपके गणितमे क्या पुनरावर्ती दशमलव नही होता?"

"किन्तु प्रत्येक दशमलवसे अेक नवीन ही वस्तु निकलती है।"

गाधीजी "अिसी प्रकार प्रत्येक जपमे नूतन अर्थ रहता है। प्रत्येक जप मनुष्यको भगवानके अधिक समीप ले जाता है, यह बिलकुल सच्ची बात है। मैं आपसे कहता हू कि आप किसी सिद्धान्तवादीसे नहीं, बल्कि अैसे आदमीसे बाते कर रहे है, जिसने अिस वस्तुका अनुभव जीवनके प्रत्येक क्षणमे किया है—यहा तक कि अिस अविराम क्रियाका बन्द हो जाना जितना सरल है, अुससे अधिक सरल प्राणवायुका निकल जाना है। यह हमारी आत्माकी भूख है।"

"मै अिसे अच्छी तरह समझ सकता हू, पर साधारण मनुष्यके लिअे तो यह अेक खाली अर्थशून्य विधि है।"

"मैं मानता हू, पर अच्छी चीजका भी दुरुपयोग हो सकता है। अिसमे चाहे जितने दम्भके लिअे गुजाअिश है सही, पर वह दम्भ भी तो सदाचारकी ही स्तुति है न। और मै यह जानता हू कि अगर दस हजार दम्भी मनुष्य मिलते है, तो अैसे करोडो भोले श्रद्धालु भी होगे, जिन्हे अीश्वरके अिस नामरटनसे शाति मिलती होगी। मकान बनाते समय पाड या मचान बाधनेकी जरूरत पड़ती है न—ठीक वैसी ही यह चीज है।"

पिअरे सेरेसोल "मगर मैं आपकी दी हुअी अिस अुपमाको जरा और आगे ले जाअू, तो आप यह मान लेगे न कि जब मकान तैयार हो जाय, तब अुस पाडको गिरा देना चाहिये?"

"हा, जब शरीर-पात हो जायगा, तब वह भी दूर हो जायगा।"

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