है। लेकिन अिस तरह डरते रहनेसे तो सत्यको भी छिपाना पड़ सकता है। अिसलिअे सुनहला कानून तो यही है कि जिसे हम सही समझे, अुसे निडर होकर करे। दम्भ और झूठ तो जगतमे चलता ही रहेगा। हमारे सही चीज करनेसे वह कुछ कम ही होगा, बढ कभी नहीं सकता। यह ध्यान रहे कि जब चारो ओर झूठ चलता हो, तब हम भी अुसीमे फसकर अपनेको धोखा न दे। अपनी शिथिलता और अज्ञानके कारण हम अनजाने भी अैसी गलती न करे। हर हालतमे सावधान रहना तो हमारा कर्तव्य है ही। सत्यका पुजारी दूसरा कुछ कर ही नही सकता। रामनाम जैसी रामबाण औषध लेनेमे सतत जागति न हो, तो रामनाम व्यर्थ जाय और हम बहुतसे वहमोमे अेक और वहम बढा दे।
हरिजनसेवक, २-६-१९४६
रामनाम और जंतर-मंतर
मै निडर होकर कह सकता हू कि मेरे रामनामका जतर-मतरसे कोअी वास्ता नही। मैने कहा है कि रामनाम अथवा किसी भी रूपमे हृदयसे अीश्वरका नाम लेना अेक महान शक्तिका सहारा लेना है। वह शक्ति जो कर सकती है, सो दूसरी कोअी शक्ति नही कर सकती। अुसके मुकाबले अणुबम भी कोअी चीज नही। अुससे सब दर्द दूर होते है। हा, यह सही है कि हृदयसे नाम लेनेकी बात कहना आसान है, करना कठिन है। वह कितना ही कठिन क्यो न हो, फिर भी वही सर्वोपरि वस्तु है।
हरिजनसेवक, १३-१०-१९४६