पाअी है। और मेरा यह दावा है कि रामनाम सभी बीमारियोकी, फिर वे तनकी हो, मनकी हो या रूहानी हो, अेक ही अचूक दवा है। अिसमें शक नही कि डॉक्टरो या वैद्योसे शरीरकी बीमारियोका अिलाज कराया जा सकता है। लेकिन रामनाम तो आदमीको खुद ही अपना वैद्य या डॉक्टर बना देता है, और अुसे अपनेको अन्दरसे नीरोग बनानेकी सजीवनी हासिल करा देता है। जब कोअी बीमारी अिस हद तक पहुच जाती है कि अुसे मिटाना मुमकिन नही रहता, अुस वक्त भी रामनाम आदमीको अुसे शान्त और स्वस्थ भाव से सह लेनेकी ताकत देता है।" अुन्होंने और कहा "जिस आदमी को रामनाममे श्रद्धा है, वह जैसे-तैसे अपनी जिन्दगी के दिन बढानेके लिअे नामी-गरामी डॉक्टरो और वैद्योके दरकी खाक नही छानेगा और यहासे वहा मारा-मारा नही फिरेगा। रामनाम डॉक्टरो और वैद्योके आगे हाथ टेक देनेके बाद लेनेकी चीज भी नही। वह तो आदमीको डॉक्टरो और वैद्योके बिना भी अपना काम चला सकनेवाला बनानेकी चीज है। रामनाममे श्रद्धा रखनेवाले के लिअे वही अुसकी पहली और आखिरी दवा है।"
हरिजनसेवक, २-६-१९४६
दशरथ-नन्दन राम
अेक आर्यसमाजी भाअी लिखते हैं
"जिन अविनाशी रामको आप अीश्वर-स्वरूप मानते है, वे दशरथ-नन्दन सीतापति राम कैसे हो सकते है? अिस दुविधा का मारा मै आपकी प्रार्थनामे बैठता तो हू, लेकिन रामधुनमे हिस्सा नही लेता। यह मुझे चुभता है। क्योकि आपका कहना तो यह है कि सब हिस्सा ले, और यह ठीक भी है। तो क्या आप अैसा कुछ नही कर सकते, जिससे सब हिस्सा ले सके?"
सबके मानी मै बता चुका हू। जो लोग दिलसे हिस्सा ले सके, जो अेक सुरमे गा सके, वे ही अिसमे हिस्सा ले, बाकी शान्त रहे। लेकिन यह तो छोटी बात हुअी। बड़ी बात तो यह है कि दशरथ-नन्दन राम अविनाशी कैसे हो सकते है? यह सवाल खुद तुलसीदास जी ने अुठाया था और अुन्होने