भी देखनेको मिलता है। "फला-फलाने मुझको चूरन दिया और मै अच्छा हो गया।" कुछ लोग अैसा कहनेवाले निकल आते है और वैद्यका व्यापार चल पड़ता है।
वैद्यो और डॉक्टरोके रामनाम रटनेकी सलाह देनेसे रोगीका दुख दूर नही होता। जब वैद्य खुद अुसके चमत्कारको जानता है, तभी रोगीको भी अुसके चमत्कारका पता चल सकता है। रामनाम पोथीका बैगन नही, वह तो अनुभवकी प्रसादी है। जिसने अुसका अनुभव प्राप्त किया है, वही यह दवा दे सकता है, दूसरा नही।
वैद्यराजने मुझे चार मत्र लिखकर दिये है। अुनमे चरक ऋषिका मत्र सीधा और सरल है। अुसका अर्थ यो है
चराचरके स्वामी विष्णुके हजार नामोमे से अेकका भी जप करनेसे सब रोग शान्त होते है।
विष्णु सहस्त्रमूर्धान चराचरपति विभुम्।
स्तुवन्नामसहस्रेण ज्वरान् सर्वान् व्यपोहति॥
—चरक चिकित्सा, अ॰ ३–श्लोक ३११
हरिजनसेवक, २४-३-१९४६
सब रोगोंका अिलाज
गाधीजीने कहा–"अगर आप अपने दिलसे डरको दूर कर दे, तो मै कहूगा कि आपने मेरी बहुत मदद की। लेकिन वह कौनसी जादूअी चीज है, जो आपके अिस डरको भगा सकती है? वह है रामनामका अमोघ मत्र। शायद आप कहेगे कि रामनाममे आपको विश्वास नही, आप उसे नही जानते। लेकिन अुसके बगैर आप अेक सास भी नही ले सकते। अुसे आप चाहे अीश्वर कहिये, अल्लाह कहिये, गॉड कहिये, या अहुरमज्द कहिये। दुनियामे जितने अिन्सान है, अुतने ही अुसके बेशुमार नाम है। विश्वमे अुसके जैसा दूसरा कोअी नही। वही अेक महान है, विभु है। दुनियामे अुससे बड़ा और कोअी नही। वह अनादि, अनन्त, निरजन और निराकार है। मेरा राम अैसा है। अेक वही मेरा स्वामी और मालिक है।"