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रामबाण अनुपात

अपने पहले अुद्धरणकी मैने अिसी मानीमे व्याख्या की। अूपर दिये हुअे दूसरे वाक्यको समझना कठिन है। आखिरकार अिन पच महाभूतोके बिना, जिनका जिक्र करते हुअे आप कहते है कि सिर्फ वही अुपचारके साधन होने चाहिये, दवाअियोका बनना भी तो नामुमकिन है।

"अगर आप श्रद्धा पर जोर देते है, तो मेरा कोअी झगडा नही। रोगीके लिअे जरूरी है कि वह अच्छा होनेके लिअे श्रद्धा भी रखे। लेकिन यह मान लेना मुश्किल है कि सिर्फ श्रद्धासे ही हमारे शारीरिक रोग भी दूर हो जायगे। दो साल पहले मेरी छोटी लडकीको 'अिन्फेण्टाअिल पैरेलिसिस' (Infantile Paralysis) हो गया था। अगर आजके नये तरीकोसे अुसका अिलाज न किया जाता, तो बेचारी हमेशाके लिअे पगु हो जाती। आप यह तो मानेगे कि अेक ढाअी सालके बच्चेको 'अिन्फेण्टाअिल पैरेलिसिस' से मुक्त होनेके लिअे रामनामका जप बताकर हम अुसकी मदद नहीं कर सकते, और न अेक माताको अपने बच्चेके लिअे अकेले अेक रामनामका ही जप करनेको आप राजी कर सकते है।

"२४ मार्चके अकमे आपने चरकका जो प्रमाण दिया है, अुससे मुझे कोअी प्रोत्साहन नहीं मिलता, क्योकि आपने ही मुझे सिखाया है कि कोई चीज कितनी ही पुरानी या प्रामाणिक क्यो न हो, अगर दिलको न जचे तो अुसे नही मानना चाहिये।"

नौजवानोके अेक अध्यापक अिस तरह लिखते है।

रामनाममे फेथ-हीलिग (श्रद्धासे अिलाज करने) और क्रिश्चियन सायन्सके[१] गुण होते हुअे भी वह अुनसे बिलकुल अलग है। रामनाम लेना तो


  1. अपनी आखिरी रोजकी बातचीतमे लॉर्ड लोथियनने क्रिश्चियन सायन्स अर्थात् अीसाअी-विज्ञानका जिक्र किया और अुस पर गाधीजीकी राय मागी। गाधीजीने कहा—"मनुष्यका अीश्वरसे अटूट सम्बन्ध है। अिसलिअे मनुष्य जितने ही अशोमे अपने अिस सम्बन्धको पहचानेगा, अुतने ही अशोमे वह पाप और रोगसे मुक्त हो जायगा। श्रद्धासे मनुष्य जो अच्छा हो जाता, अुसका रहस्य यही है। क्योकि अीश्वर सत्य, स्वास्थ्य और प्रेम है।"
    गाधीजीने आगे कहा—"और वह तो वैद्य भी है। मेरा अीसाअी-विज्ञानके साथ कोअी झगडा नही है। मैने तो बरसो पहले जोहानिसबर्गमे कहा था कि मै अुस सिद्धान्तको पूरी तरह मान सकता हू। पर बहुतसे अीसाअी-वैज्ञानिकोमे मेरी कोअी श्रद्धा नही है। बौद्धिक विश्वास होना अेक बात है, पर किसी चीजको हृदयसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर लेना दूसरी बात है। मै अिस विधानको मजूर करता हू कि रोगमात्र पापका परिणाम है। आदमीको अगर खासी भी आती है, तो वह पापका ही फल है। मेरी अपनी अिस खूनके दबाववाली बीमारीका कारण भी अत्यधिक काम और चिन्ताका बोझ ही तो है। पर सवाल यह है कि मैने क्यो अितना काम और चिन्ता की? अत्यधिक काम और जल्दबाजी भी तो पाप ही है। मै यह भी खूब जानता हू कि डॉक्टरोसे बचना भी मेरे लिअे पूरी तरह सम्भव था। पर अीसाअी-विज्ञानने शारीरिक स्वास्थ्य और रोगवाले प्रश्नको जो अितना अधिक महत्त्व दे रखा है, वह मेरी समझमे नही आता।"
    लॉर्ड लोथियनने कहा—"आदमी अगर अितना मान ले कि रोगमात्र पापका ही फल है तो काफी है। गीतामे भी तो कहा है न कि पचेन्द्रियोके विषयोका मनुष्यको त्याग कर देना चाहिये, क्योकि वे माया है। अीश्वर जीवन, प्रेम और स्वास्थ्य है।"
    गाधीजी—"मैने अिसे कुछ दूसरे शब्दोमे रखा है। अीश्वर सत्य है। क्योकि हमारे धर्मग्रथोमे लिखा है कि सिवा सत्यके कुछ है ही नही। अिसीका अर्थ हुआ अीश्वर जीवन है। और अिसलिअे मै कहता हू कि सत्य और प्रेम अेक ही सिक्केकी दो बाजुअे है। और प्रेम वह जरिया है, जिसके द्वारा हम सत्यको प्राप्त कर सकते है, जो कि हमारा ध्येय है।"
    हरिजनसेवक, २९-१-१९३८

रा-३