अिस पुण्य-नामका हृदयसे जप करनेके लिअे जो जरूरी शर्ते है, अुन्हे मै यहा नही दोहराअूगा।
चरकका प्रमाण अुन्ही लोगोके लिअे फायदेमन्द है, जो रामनाममे श्रद्धा और विश्वास रखते है। दूसरे लोगोको हक है कि वे अुस पर विचार न करे।
बच्चे गैर-जिम्मेदार होते है। बेशक रामनाम अुनके लिअे नही है। वे तो मा-बापकी दया पर जीनेवाले बेबस जीव है। अिससे हमे पता चलता है कि मा-बापकी बच्चोके और समाजके प्रति कितनी भारी जिम्मेदारी है। मै अुन मा-बापोको जानता हू, जिन्होने अपने बच्चोके रोगोके बारेमे लापरवाही की है, और यहा तक समझ लिया है कि हमारे रामनाम लेनेसे ही वे अच्छे हो जायगे।
आखिरमे, सब दवाअिया पच महाभूतोसे बनी है, यह दलील देना विचारोकी अराजकता जाहिर करता है। मैने सिर्फ अिसलिअे अुसकी तरफ, अिशारा किया है कि वह दूर हो जाय।
हरिजनसेवक, २८-४-१९४६
आयुर्वेद और कुदरती अुपचार
अीश्वरकी स्तुति और सदाचारका प्रचार हर तरहकी बीमारीको रोकनेका अच्छे-से-अच्छा और सस्ते-से-सस्ता अिलाज है। मुझे अिसमे जरा भी शक नही। अफसोस अिस बातका है कि वैद्य, हकीम और डॉक्टर अिस सस्ते अिलाजका अुपयोग ही नही करते। बल्कि हुआ यह है कि अुनकी किताबोमे अिस अिलाजकी कोई जगह ही नही रही, और कही है तो अुसने जन्तर-मन्तरकी शकल अख्तियार करके लोगोको वहमके कुअेमे ढकेला है। अीश्वरकी स्तुति या रामनामको वहमसे कोअी निस्बत नही। यह कुदरतका सुनहला कानून है। जो अिस पर अमल करता है, वह बीमारीसे बचा रहता है। जो अमल नही करता, वह बीमारियोसे घिरा रहता है। तन्दुरुस्त रहनेका जो कानून है, वही बीमार होनेके बाद बीमारीसे छुटकारा पानेका भी कानून है। सवाल यह होता है कि जो रामनाम जपता है और नेकचलनीसे रहता है,