सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:Ramanama.pdf/४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
३८
रामनाम

अुन सबका अेक ही आम अिलाज भी हो, तो अुसमे अचरजकी कोअी बात नही। रोगोकी तरह अिलाज भी अेक ही ढगके हो सकते है। अिसलिअे आज सुबह मेरे पास जितने बीमार आये थे, अुन सबको मैने रामनामके साथ करीब-करीब अेकसा ही अिलाज सुझाया था। लेकिन अपने रोजमर्राके जीवनमे जब शास्त्र हमे अनुकूल नहीं होते, तो हम अुनके वचनोका मनचाहा अर्थ निकालकर अपना काम चला लेते है। मनुष्यने अिस कलाका अच्छा विकास कर लिया है। हमने अपने मन पर अेक अैसे भ्रम या वहमको सवार होने दिया है कि शास्त्रोका अुपयोग सिर्फ अिसलिअे है कि अगले जन्ममे जीवका आध्यात्मिक कल्याण हो और धर्मका पालन इसलिए करना है कि मरनेके बाद पुण्यकी यह कमाअी काम आ सके। मेरा मत अैसा नही है। अगर इस जीवनके व्यवहारमे धर्मका कोअी अुपयोग न हो, तो अगले जन्ममे मुझे अुससे क्या निस्बत हो सकती है?

"अिस दुनियामे बिरला ही कोअी अैसा होगा, जो शरीर और मनकी सभी बीमारियोसे बिलकुल बरी हो। तन और मनकी कुछ बीमारिया तो अैसी है, जिनका इस दुनियामे कोअी इलाज ही नही। जैसे, अगर शरीरका कोई अग खडित हो गया हो, तो उसको फिरसे पैदा कर देनेका चमत्कार रामनाममे कहासे आये? लेकिन उसमे इससे भी बडा चमत्कार कर दिखानेकी ताकत है। वह अग-भग या बीमारियोके बावजूद सारी जिन्दगी अटूट शान्तिके[] साथ बितानेकी शक्ति देता है और अुमर पूरी होने पर जिस जगह सबको जाना पडता है, वहा जानेकी बारी आने पर मौतके दुखको और चिताकी विजयके डरको मिटा देता है, यह क्या कोई छोटा-मोटा चमत्कार है? जब आगे-पीछे मौत आने ही वाली है, तो वह कब आयेगी, अिस फिकरमे हम पहलेसे ही क्यो मरे?"

कुदरती इलाजके मूल तत्त्व

"मनुष्यका भौतिक शरीर पृथ्वी, पानी, आकाश, तेज और वायु नामके पांच तत्त्वोसे बना है, जो पच महाभूत कहलाते है। अिनमे से तेज तत्त्व शरीरको शक्ति पहुचाता है। आत्मा उसको चैतन्य प्रदान करती है।


  1. रामनाम जैसी शान्ति प्रदान करनेवाली दुसरी कोअी शक्ति नहीं है।––प्रेस रिपोर्ट, १०-१-१९४६