"अिन सबमे सबसे जरूरी चीज हवा है। आदमी बिना खाये कअी हफ्तो तक जी सकता है, पानीके बिना भी वह कुछ घण्टे बिता सकता है, लेकिन हवाके बिना तो कुछ ही मिनटोमे अुसकी देहका अन्त हो सकता है। अिसीलिअे अीश्वरने हवाको सबके लिए सुलभ बनाया है। अन्न और पानीकी तगी कभी-कभी पैदा हो सकती है, हवाकी कभी नही। अैसा होते हुअे भी हम बेवकूफोकी तरह अपने घरोके अन्दर खिडकी और दरवाजे बन्द करके सोते है और अीश्वरकी प्रत्यक्ष प्रसादी-सी ताजी और साफ हवासे फायदा नही अुठाते। अगर चोरोका डर लगता है, तो रातमे अपने घरोके दरवाजे और खिडकिया बन्द रखिये, लेकिन खुद अपनेको उनमे बन्द रखनेकी क्या जरूरत है?
"साफ और ताजी हवा पानेके लिअे आदमीको खुलेमें सोना चाहिये। लेकिन खुलेमे सोकर धूल और गन्दगीसे भरी हवा लेनेका कोअी मतलब नही अिसलिअे आप जिस जगह सोये, वहा धूल और गन्दगी नही होनी चाहिये। धूल और सरदीसे बचनेके लिअे कुछ लोग सिरसे पैर तक ओढ लेनेके आदी होते है। यह तो बीमारीसे भी बदतर अिलाज हुआ। दूसरी बुरी आदत मुहसे सास लेनेकी है। नथनोकी राह फेफडोमे पहुचनेवाली हवा छनकर साफ हो जाती है, और उसे जितना गरम होना चाहिये अुतनी गरम भी वह हो लेती है।
"जो आदमी जहा चाहे वहा और जिस तरह चाहे अुस तरह थूक कर, कूडा-करकट डालकर या गन्दगी फैलाकर या दूसरे तरीकोसे हवाको गन्दी करता है, वह कुदरतका और मनुष्योका गुनहगार है। मनुष्यका शरीर अीश्वरका मदिर है। उस मन्दिरमे जानेवाली हवाको जो गन्दी करता है, वह मन्दिरको भी बिगाडता है। अुसका रामनाम लेना फजूल है।"
हरिजनसेवक, ७-४-१९४६