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उरुळीकांचनमें कुदरती अुपचार
कुदरती अुपचारके दो पहलू है अेक अीश्वरकी शक्ति यानी रामनामसे दर्द मिटाना और दूसरा, अैसे अुपाय करना कि दर्द पैदा ही न हो सके। मेरे साथी लिखते है कि काचन गावके लोग गावको साफ रखनेमे मदद देते है। जिस जगह शरीर-सफाअी, घर-सफाअी और ग्राम-सफाअी हो, युक्ताहार हो और योग्य व्यायाम हो, वहा कम-से-कम बीमारी होती है। और अगर चित्तशुद्धि भी हो, तो कहा जा सकता है कि बीमारी असम्भव हो जाती है। रामनामके बिना चित्तशुद्धि नहीं हो सकती। अगर देहातवाले इतनी बात समझ जाय, तो वैद्य, हकीम या डॉक्टरकी जरूरत न रह जाय।
काचन गावमे गाये नामको ही है। अिसे मै कमनसीबी मानता हू। कुछ भैसे है, लेकिन मेरे पास जितने प्रमाण है, वे बताते है कि गाय सबसे ज्यादा अुपयोगी प्राणी है। गायका दूध भी खानेमे आरोग्यप्रद है और गायका जो अुपयोग किया जा सकता है, वह भैसका कभी नही किया जा सकता। मरीजोके लिअे तो वैद्य लोग गायके दूधका ही अुपयोग बतलाते है। अिसलिअे मै अुम्मीद रखूगा कि काचनवासी उरुळीमे गायोका एक जूथ रखेगे, जिससे सब लोगोको गायका ताजा और साफ दूध मिल सके। सेहत अच्छी रखनेके लिअे दूधकी बहुत ज्यादा जरूरत रहती है।
कुदरती अुपचारके गर्भमे यह बात रही है कि मानव-जीवनकी आदर्श रचनामे देहातकी या शहरकी आदर्श रचना आ ही जाती है और अुसका मध्यबिन्दु तो अीश्वर ही हो सकता है।
हरिजनसेवक, २६-५-१९४६
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