जहा विचार शुद्ध हो, वहा बीमारी आ ही नहीं सकती। अैसी हालतको पहुचना शायद कठिन हो, पर अिस बात को समझ लेना सेहत की पहली सीढी है। दूसरी सीढी है, समझने के साथ-साथ कोशिश भी करना। जब किसी के जीवन में यह बुनियादी परिवर्तन आता है, तो अुसके लिअे स्वाभाविक हो जाता है कि वह अुसके साथ-साथ कुदरत के अुन तमाम कानूनों का पालन भी करे, जो आज तक मनुष्य ने ढूढ निकाले है। जब तक अुनकी अुपेक्षा की जाय, तब तक कोअी यह नहीं कह सकता कि अुसका हृदय पवित्र हैं। यह कहना गलत न होगा कि अगर किसी का हृदय पवित्र है, तो अुसकी सेहत रामनाम न लेते हुए भी अुतनी ही अच्छी रह सकती है। बात सिर्फ यह है कि सिवा रामनाम के पवित्रता पाने का और कोअी तरीका मुझे मालूम नहीं। दुनिया में हर जगह पुराने ऋषि भी अिसी रास्ते पर चले है। और वे तो भगवान के बन्दे थे, कोअी वहमी या ढोगी आदमी नहीं।
अगर अिसीका नाम 'ऋिश्चियन सायन्स' है, तो मुझे कुछ कहना नहीं है। मै यह थोडी ही कहता हू कि रामनाम मेरी ही शोध है। जहा तक मै जानता हू, रामनाम तो अीसाअी धर्मसे भी पुराना है।
अेक भाअी पूछते है कि क्या रामनाममे ऑपरेशनकी अिजाज़त नहीं? क्यो नहीं? अेक टाग अगर दुर्घटना में कट गअी है, तो रामनाम अुसे थोडे ही वापस ला सकता है। लेकिन बहुतसी हालतोमे ऑपरेशन जरूरी नहीं होता। मगर जहा जरूरी हो वहा करवा लेना चाहिये। सिर्फ अितनी बात है कि अगर भगवानके किसी बन्देका हाथ-पाव जाता रहे, तो वह अिसकी चिन्ता नहीं करेगा। रामनाम कोअी अटकलपच्चू तजवीज नहीं है, और न कोअी कामचलाअू चीज ही।
हरिजनसेवक, ९-६-१९४६