बेचैन बना दिया। लेकिन दूसरा कोअी रास्ता भी न था। अुन्होनें आश्रमवालोंके सामने अपनी परेशानीका ज़िक्र किया। वे बोले––"ये भाअी अेक अच्छे सेवक है। पिछले साल तन्दुरुस्त होनेके बाद वे आश्रमके बगीचेका काम देखते थे और दवा खाने का हिसाब रखते थे। वे लगन के साथ अपना काम करते और अुसीमें मगन रहते थे। फिर अुन्हे मलेरिया हो गया और अुसके लिअे अुनको कुनैनका इंजेक्शन दिया गया, क्योंकि खाने या पीनेके बजाय सूईके ज़रिये कुनैन लेने से वह सीधी खूनमें मिल जाती है और जल्दी असर करती है। अिन भाईका यह खयाल हो गया है कि अिजेक्शन उनके दिमाग में चढ़ गया है, और उसीका दिमाग पर इतना बुरा असर हुआ है। आज सुबह जब मैं अपने कमरेमें बैठ कर काम कर रहा था, तो मैंने देखा कि वे बाहर खड़े चिल्ला रहे है और हवामें अिधर-अुधर हाथ झुलाते हुए घूम रहे हैं। मैं बाहर निकलकर अुनके साथ घूमने लगा। अिससे वे शान्त हुए। लेकिन जैसे ही मैं अुनसे अलग होकर अपनी जगह पर लौटा, वे फिर अपने दिमाग का तौल खो बैठे और किसीके बसके न रहे। जब वे बिफरते है तो किसीकी बात नही सुनते। इसीलिए उनको जेल भेज देना पड़ा।
"कुदरती तौर पर मुझे अिस खयालसे तकलीफ होती है कि हमें अपने ही अेक सेवक को जेलमें भेजना पड़ा है। अिस पर कोअी मुझसे पूछ सकता है––'आप दावा करते है कि रामनाम सब रोगोंका रामबाण अिलाज है, तो फिर आपका वह रामनाम कहा गया?' सच है कि अिस मामले में मैं नाकाम रहा हू, फिर भी मै कहता हू कि रामनाममें मेरी श्रद्धा ज्यो की त्यो बनी हुई है। रामनाम कभी नाकाम नही हो सकता। नाकामीका मतलब तो यही है कि हममे कही कोअी खामी है। इस नाकामी की वजह को हमें अपने अन्दर ही ढूँढना चाहिये।"
हरिजनसेवक, १-९-१९४६